कविता

गीत- ******मन पर अधिकार तुम्हारा है*****

यह तुमने भी स्वीकार किया यह हमने भी स्वीकारा है.
तन पर अधिकार किसी का है मन पर अधिकार तुम्हारा है.
तन और कहीं पर रहता है
मन का घर और कहीं पर है.
मैं अपना पता बताऊँ क्या
मेरी खातिर यह दुष्कर है.
तन में घर-बार किसी का है मन में घर-बार तुम्हारा है.
तन पर अधिकार किसी का है मन पर अधिकार तुम्हारा है.
मैं तो नजदीक किसी के हूँ
तुमसे तो काफी दूरी है.
पर इसे समझते हो तुम भी
यह दुनियावी मजबूरी है.
तन से सत्कार किसी का है मन से सत्कार तुम्हारा है.
तन पर अधिकार किसी का है मन पर अधिकार तुम्हारा है.
रातें हैं और किसी की पर
ख्वाबों में तुम ही रहते हो.
मन वो ही कहता-सुनता है
जो कुछ तुम सुनते-कहते हो.
तन का संसार किसी का है मन का संसार तुम्हारा है.
तन पर अधिकार किसी का है मन पर अधिकार तुम्हारा है.
—— डा.कमलेश द्विवेदी
—— मो.09415474674

One thought on “गीत- ******मन पर अधिकार तुम्हारा है*****

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर गीत डाक्टर साहब.

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