गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

लगता आज ग़ज़ल मेरी कुछ मुझसे रूठी है शायद कोई कड़ी रिश्ते की फिर से टूटी है हार निगलते खूँटी को मैंने देखा था पर क्या कोई मानेगा हार निगलती खूँटी है कुछ चेहरों की मुस्कानों से ऐसा क्यों लगता उनकी ये मुस्कान न सच्ची, बिलकुल झूठी है उसके कुट्टी करने पर जब मैं नाराज़ […]

गीत/नवगीत

अन्तिम गीत – जब आना तो खुद पढ़ लेना

याद तुम्हारी आई मुझको एक गीत लिख दिया पत्र सा मगर तबीयत ठीक नहीं है वरना अभी पोस्ट कर देताजब आना तो ख़ुद पढ़ लेना जो जब आया याद, लिख दिया क्रम पर ध्यान नहीं दे पाया अभी तबीयत गड़बड़ है ना क्रम भी गड़बड़ हो सकता है तुम अपने ढंग से गढ़ लेना पत्र […]

समाचार

डॉ.कमलेश द्विवेदी को मिला माणिक वर्मा सम्मान

विगत दिवस कवि विनोद राजयोगी सम्मान समिति घिरोर, मैनपुरी द्वारा कानपुर नगर के सुपरिचित हास्य-व्यंग्य कवि डॉ. कमलेश द्विवेदी को माणिक वर्मा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। डॉ.द्विवेदी को यह सम्मान हिंदी साहित्य के व्यंग्य क्षेत्र में किए गए उनके विशिष्ट योगदान के लिए प्रदान किया गया। डॉ.द्विवेदी ने विगत लगभग 4 दशकों में हास्य-व्यंग्य […]

गीत/नवगीत

संस्कार जो मुझे मिले हैं

कहने को कुछ भी कह सकता फिर भी चुप रह जाता हूं.संस्कार जो मुझे मिले हैं उनको भूल न पाता हूं. संस्कार जो मुझमें दिखतेवे मेरे परिचायक हैं.मेरे कुल की गौरव गाथाके वे सच्चे गायक हैं.इसीलिए मैं अंतर्मन से उनको हरदम गाता हूं.संस्कार जो मुझे मिले हैं उनको भूल न पाता हूं. पर इसका यह […]

गीत/नवगीत

गीत – जग की रीत निभाओ

जग में आए हो तो प्यारे जग की रीत निभाओ. अगर किसी से प्रीत करो तो अपनी प्रीत निभाओ. जो भी मन को भाए उसको मन का मीत लिखो तुम. उस पर कोई ग़ज़ल कहो या कोई गीत लिखो तुम. ग़ज़ल कहो तो ग़ज़ल, गीत लिक्खो तो गीत निभाओ. जग में आए हो तो प्यारे […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

झूठों के संग रहना भी है सच्ची सच्ची कहना भी है पास अदा का जादू है तो लाज-शरम का गहना भी है अब क्यों उठतीं सबकी नजरें अब तो सब कुछ पहना भी है यों तो है कितनी आजादी पर कितना कुछ सहना भी है चारों ओर खड़ी दीवारें लेकिन इनको ढहना भी है खुद […]

गीत/नवगीत

मुझको यह विश्वास नहीं है

आज सभी हैं पास तुम्हारे कोई मेरे पास नहीं है.लेकिन कल भी ऐसा होगा मुझको यह विश्वास नहीं है. तुम चाहो तो सूरज निकले तुम चाहो तो चंदा आए.पवन तुम्हारी अनुमति के बिनकोई पता नहीं डुलाए. आज सभी हैं दास तुम्हारे कोई मेरा दास नहीं है.लेकिन कल भी ऐसा होगा मुझको यह विश्वास नहीं है. […]

गीतिका/ग़ज़ल

गांव के लोग

सीधे-सादे भोले-भाले सबसे न्यारे गांव के लोग। सबसे ज़्यादा अच्छे लगते हमें हमारे गांव के लोग। भेदभाव की बात न होती माटी की संतानों में, सब पर अपना प्यार लुटाते प्यारे-प्यारे गांव के लोग। शायद ही करता हो चिंता कोई गांव के लोगों की, लेकिन सब की ख़ातिर चिंतित सांझ-सकारे गांव के लोग। सीमा डोली […]

गीत/नवगीत

गीत- प्रकाश तू ही फैलाती है

मैं माटी का दिया और तू मेरी बाती है। मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।। मैं हूँ तुझमें तू है मुझमें ऐसा बंधन है। तेरे कारण ही मेरा यह जीवन पावन है। मैं चन्दन हूँ लेकिन मुझको तू महकाती है। मेरे जीवन में प्रकाश तू ही फैलाती है।। अपने बंधन बँधे यहाँ से […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल-गुनगुनाए जा रहे हैं

किसलिए हम ख़ुश हैं क्यों हम मुस्कुराए जा रहे हैं.लोग कुछ इस बात पर ही ख़ार खाए जा रहे हैं. आम थे जो लोग पहले आम ही हैं आज भी वो,बरगलाए जा रहे थे, बरगलाए जा रहे हैं. रेत के बनते महल जो टिक नहीं पाते कभी वो,जानकर भी लोग जाने क्यों बनाये जा रहे […]