गीत/नवगीत

गीत – जग की रीत निभाओ

जग में आए हो तो प्यारे जग की रीत निभाओ.
अगर किसी से प्रीत करो तो अपनी प्रीत निभाओ.

जो भी मन को भाए उसको
मन का मीत लिखो तुम.
उस पर कोई ग़ज़ल कहो या
कोई गीत लिखो तुम.
ग़ज़ल कहो तो ग़ज़ल, गीत लिक्खो तो गीत निभाओ.
जग में आए हो तो प्यारे जग की रीत निभाओ.

बुरे मिलेंगे कभी कहीं तो
अच्छे लोग मिलेंगे.
मुरझाएंगे फूल कभी कुछ
सुंदर फूल खिलेंगे.
गर्मी आए, बारिश आए या फिर शीत, निभाओ.
जग में आए हो तो प्यारे जग की रीत निभाओ.

कभी-कभी कुछ ऐसा होगा
सहना तुम्हें पड़ेगा.
मगर कभी कुछ ऐसा होगा
कहना तुम्हें पड़ेगा.
जब भी जैसा आवश्यक हो वैसा मीत निभाओ.
जग में आए हो तो प्यारे जग की रीत निभाओ.

— डॉ.कमलेश द्विवेदी