कविता

कविता

चेहरे पर मुखोटे लगाते है

वो

कहलाते है अपने

और सताते भी है वो

दिल के करीब रहके

यही नसीब कहके

दिल के जख्म  बढाते है वो

नही जान पाते

कब दूर हो गये

फांसले कब बने

क्यू मजबूर हो गये

वो भ्रम था हमारा जो चूर हो गया

कल तक था जो अजीज

अब क्यू दूर हो गया

काश इंसा को पहचानने के

गुण हम मे होते

तो आज हम यूं झर झर

लङीया न रोते

किस्मत का देखो

होता यही खेल है

अपना कैसे होगा

जब नही कोई मेल है

बस ये बात ‘एकता’

अब समझ आ गई

अपनो की चाहत खाली

बातो मे समा गई

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने [email protected]

7 thoughts on “कविता

  • मनजीत कौर

    बहुत खूब !

  • एकता सारदा

    Thank u sir..

    • विजय कुमार सिंघल

      स्वागत है. पर आपको अपनी कविता heading में नहीं उसके नीचे body वाले बॉक्स में लगनी चाहिए.

      • एकता सारदा

        आगे से इस बात का ख्याल रहेगा विजय जी..

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता एकता जी.

    • एकता सारदा

      धन्यवाद सर

    • एकता सारदा

      SHUKRIYA..Vijay kumar singhal ji

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