विकृत मानसिकता की राजनीति
पश्चिमी उप्र में अपनी राजनैतिक पकड़ रखने वाले रालोद नेता चौ. अजित सिंह एक बार फिर राजनीति की चर्चा में आ गये हैं। विधानसभा उपचुनावों में किसी वजह से भाजपा को मिली पराजय से अतिउत्साहित मोदी विरोधी नेताओं ने यह समझ लिया है कि जैसे कि अब उनकी पुर्नवापसी होने जा रही है। वे धोखे में जी रहे हैं तथा गरीब व अनपढ़ किसानों को बेवकूफ बनाकर अपना राजनैतिक स्वार्थ सिद्ध करना चाह रहे हैें। चौ. अजित सिंह इस बार लोकसभा चुनाव बुरी तरह हार चुके हैं तथा उनका एक भी नुमाइंदा लोकसभा में नहीं पहुंच सका है।यह बात उनके गले अभी तक नहीं उतर पा रही है। इसलिए अपनी राजनीति को ताजा माहौल में चमकाने के लिए सरकारी बंगले की बिजली ,पानी काटे जाने व उसको खाली करने सम्बंधी नोटिस मिलने को ही मुददा बना लिया है।
यह एक तथ्य है कि चौ. अजित सिंह अभी तक लगभग सभी सरकारों में मंत्रीपद पर आसीन रहते थे तथा अपने दो- चार सांसदों के बल पर केंद्रीय सत्ता को अपने हाथों की कठपुतली बनाकर रखते थे। रोज सरकार गिराने की धमकी देते थे तथा अपनी राजनैतिक गंदगी की स्वार्थपूर्ति में लगे रहते थे। लेकिन अब समय बदल चुका है। अजित सिंह को उपचुनावों में भाजपा की पराजय के बाद लगा कि अब यही समय है भाजपा से अपना बदला चुकाने का व मोदी को नीचा दिखाने का। अजित सिंह ने समझा कि जैसे वे अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों को अपनी उंगली पर नचाया करते थे उसी प्रकार मोदी जी को अपनी उंगली पर नचायोंगे। लेकिन फिलहाल तो ऐसा नहीं हो पाया है। केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू के दो टूक जवाब देने के बाद उन्हें अपना सामान आखिरकार निकालना ही पड़ गया है। जिस सरकार बंगले पर वे अपना पुश्तैनी अधिकार जमा रहे हैं वहां पर उन्होनें पिछले दस सालों से बिजली व पानी का बिल नहीं भरा है। किराया नहीं दिया है। मुफ्त की खाकर किसानों के मसीहा बनकर बैठे थे। अगर सम्भवतः स्व. चौ. चरण सिंह इस समय जीवित होते तो वे भी इस प्रकार की सुविधा लेने से सम्भवतः इंकार कर देते।
चौ. अजित सिंह की ओर से जिस प्रकार सरकारी बंगले को स्मारक बनाने की मांग की जा रही है वह केवल और केवल राजनैतिक दिखावा और छलप्रपंच है तथा किसी न किसी प्रकार से भाजपा व मोदी को बदनाम करने की साजिश है। इस प्रकार की हरकतों से अजित सिंह जाटों व किसानों को केवल भाजपा के खिलाफ भड़का रहे है। सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि इस पूरे खेल में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंदर सिंह हुडडा व जदयू के शरद यादव का साथ मिल गया है। वहीं उप्र समाजवादी पार्टी भी जले पर नमक छिड़ककर कर उन्हें अपना आशीर्वाद दे रही है। समाजवादी पार्टी ने तो आगे बढ़कर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौ. चरण सिंह को भारत रत्न तक देने की मांग कर डाली है। यह पूरी तरह से बेसिरपैर की राजनैतिक नौटंकी भर है तथा भारतरत्न का अपमान भी है।
यह देश के सभी इतिहासकार जानते हैं कि स्वर्गीय चौ. चरण सिंह ने देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए तत्कालीन कांग्रेस के साथ किस प्रकार का गंदा राजनैतिक खेल खेला था और फिर वह खुद भी एक भी दिन संसद का सामना तक नहीं कर सके थे। यहां तक कि चरण सिंह ने देश के नाम सम्बोधन भी नहीं दिया था। यह अजित सिंह के पिता के राजनैतिक इतिहास के काले पन्ने हैं। जिसके कारण ही आज देश में वंशवाद व भ्रष्टाचार पनप रहा है। देश विकास की राजनीति मेें पिछड़ रहा है। हरियाणा के मुख्यमंत्री को लग रहा है कि जिस प्रकार से भाजपा लगातार उपचुनावों में हारी है उसकी मनोदशा में गिरावट आ गयी है तथा अ बवह हरियाणा में चौ. अजित सिंह के बहाने जाट व किसानों के समीकरणों को साधकर सत्ता मे पुर्नवापसी कर लेंगे।
अगर चौ. अजित सिंह को अपने पिता के काम पर इतना ही गर्व है तो वे अपने धन के बल पर भी अपने गांव या किसी अन्य महत्वपूर्ण स्थान पर स्मारक क्यों नहीं बनवा लेते। उप्र सरकार यदि उनकी हितैषी है तो वह भी स्वंर्गीय चौ. चरण सिंह के नाम पर स्मारक भवन या फिर पार्क आदि बनवा सकती है जैसेकि वह दिवंगत नेता जनेश्वर मिश्र व लोहिया आदि के लिए कर रही है। वहीं एक महत्वपूर्ण बात यह है कि चौ. अजित सिंह को अपने पिता की याद अब क्यों सता रही है। उन्होंने मनमोहन सिंह की सरकार में ही यह काम क्यों नहीं कर डाला दूसरी तरफ जिन नेताओं के स्मारकों के नाम लिये जा रहे हैं वे सब की सब नेहरू व गांधी परिवार की भक्ति का ही परिणाम है। अधिकांश स्मारक भवनों का दुरूपयोग ही हो रहा है। अधिकांश का बिजली, पानी , हाउस टैक्स आदि का बिल बकाया है।
अब समय आ गया है कि देश मेें इस प्रकार की ओछी दबाव वाली राजनीत बंद होनी चाहिये। जनता ऐसे नेताओं का हुक्का पानी पहले ही बंद कर चुकी है यदि यही हाल रहा तो उन्हें कहीें बैठने की जगह भी नहीं मिलेगी। आज सोशल मीडिया में काटूनों व व्यंग्य आदि के माध्यम से अजित सिंह का जोरदार मजाक ही बनाया जा रहा है। इसी से उन्हें जनता का मंतव्य समझ लेना चाहिये।
अच्छा लेख. अजित सिंह जो कर रहे हैं वह उनकी गरिमा के अनुकूल नहीं है. वैसे यह भी सच है कि नेताओं के नाम पर स्मारक बनाने की बहुत गलत परंपरा कांग्रेस ने डाल दी है. इसको बदलने की आवश्यकता है.