सूरत या सीरत ……
सूरत को निखारने के लिए
क्या कुछ नहीं हैं मार्किट में
पर सीरत को क्या किसी तरह
निखारा जा सकता है कभी भी
नहीं कभी नहीं …. नामुमकिन है
सूरत तो एक दिन ढल जाएगी
पर सीरत है जो सदाबहार रहेगी
न तो ये कभी बूढ़ी होगी न ही नष्ट
इसका प्रभाव दिलों पर हमेशा के लिए
एक अमिट छाप छोड़ जाता है
क्या उसे भुलाया जा सकता है …
नहीं कभी नहीं …. नामुमकिन है
जरुरी नहीं हर चमकती चीज
सोना ही हो क्यूँकि चाँद में भी
दाग हैं पर उसकी चाँदनी …
उसकी चाँदनी तो बेदाग है
खूबसूरत सूरत हो न हो भले ही
खूबसूरत सीरत जरुर होनी चाहिए !!! …….(प्रवीन मलिक)
बहुत सुन्दर कविता
बहुत अच्छी कविता. कहा भी है- न सूरत बुरी है न सीरत बुरी है, बुरा है वही जिसकी नीयत बुरी है.