उपन्यास अंश

उपन्यास : शान्तिदूत (सेंतालीसवीं कड़ी)

कृष्ण प्रश्नवाचक नेत्रों से सीधे कुंती की ओर देख रहे थे और अपने प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे थे। उधर कुंती के मन में भयंकर अन्तर्द्वंद चल रहा था कि उन्होंने जिस रहस्य को प्रयत्नपूर्वक जीवनभर गुप्त रखा था, उसे प्रकट करूँ या नहीं। प्रकट करने पर बहुत अपयश मिलेगा, यह वे जानती थीं। लेकिन अपने पुत्रों की सुरक्षा के लिए अब उनको वह रहस्य प्रकट करना ही होगा। यही निश्चय करके उन्होंने कृष्ण को रोका था और एकांत में गोपनीय वार्ता की व्यवस्था की थी। फिर भी वे उसे प्रकट करते हुए स्वाभाविक संकोच कर रही थीं।

अन्त में मन को कड़ा करके उन्होंने कहा- ‘कर्ण युधिष्ठिर का बड़ा भाई है।’

यह रहस्योद्घाटन सुनकर कृष्ण अवाक् रह गये। वे जानते थे कि कुंती कभी असत्य और अनावश्यक नहीं बोलतीं, इसलिए यह कथन सत्य होगा। इस रहस्य को इस समय प्रकट करने का कारण भी कृष्ण समझ गये कि कुंती सगे भाइयों में युद्ध नहीं होने देना चाहतीं। कर्ण कौरव पक्ष के सबसे अधिक महत्वपूर्ण योद्धाओं में से एक था और सूत-पुत्र होने के बाद भी दुर्योधन को उसी पर सबसे अधिक विश्वास था। आगामी युद्ध में उसका सीधा संग्राम अर्जुन से होगा, यह भी निश्चित था। इसी संभावना से बचने के लिए कुंती ने यह रहस्य कृष्ण के सामने खोला था।

लेकिन इस रहस्योद्घाटन ने कृष्ण से समक्ष कई प्रश्न खड़े कर दिये थे। अपनी जिज्ञासा को शान्त करने के लिए कृष्ण ने पूछा- ‘कर्ण युधिष्ठिर का बड़ा भाई कैसे हुआ, बुआ?’

‘वह मेरी कुमारावस्था की संतान है, कृष्ण!’

‘उसके पिता कौन हैं, बुआ?’

‘सूर्यदेव उसके पिता हैं, कृष्ण!’

‘कैसे?’ कृष्ण की जिज्ञासा चरम पर पहुंच गयी थी।

‘महर्षि दुर्वासा ने मुझे एक मंत्र दिया था जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान कर सकती थी। मैंने अपनी उत्सुकता को शान्त करने के लिए सूर्यदेव को बुलाया था। उसी के कारण मेरे गर्भ से कर्ण का जन्म हुआ था, कृष्ण!’

‘फिर आपने क्या किया था, बुआ?’ कृष्ण को अपनी बुआ पर लेशमात्र भी क्रोध नहीं आया, बल्कि वे पूरी बात जानना चाहते थे।

‘मैंने उसको एक सुरक्षित पेटिका में रखकर नदी में बहा दिया था। कर्ण वही है पुत्र!’

‘आप इतने विश्वास से कैसे कह सकती हैं कि कर्ण आपका वही पुत्र है जिसको आपने पेटिका में रखकर नदी में बहा दिया था?’

‘मैंने अपने एक विश्वस्त सैनिक को उस पेटिका पर दृष्टि रखने के लिए लगाया था, कृष्ण! उसी ने आकर मुझे सूचना दी थी कि वह पेटिका हस्तिनापुर के सूत अधिरथ को मिल गयी थी और उसने पेटिका में से निकले शिशु को अपने पुत्र के रूप में अंगीकार कर लिया था। उसकी पत्नी राधा के उस समय कोई संतान नहीं थी।’

अब कृष्ण की समझ में सारी घटना आ गयी। इस बात में तो कोई संदेह नहीं था कि कर्ण किसी क्षत्रिय का पुत्र था, क्योंकि उसके चेहरे पर जो तेज था, उसके शरीर में जो बल था, वह किसी साधारण सूत-पुत्र में होना असम्भव सा है। कई बार कृष्ण को भी संदेह हुआ था कि यह किसी क्षत्राणी का जाया है। लेकिन उनको यह आशंका बिल्कुल नहीं थी कि वह उनकी बुआ कुंती का पुत्र हो सकता है।

कुछ विचार करने के बाद कृष्ण ने पूछा- ‘बुआ, यह रहस्य किस-किस को ज्ञात है?’

‘मुझे नहीं पता कि यह किस-किस को ज्ञात है। मैंने तो तुम्हारे अतिरिक्त किसी को भी यह रहस्य नहीं बताया है।’

‘हूं!’ कृष्ण पुनः सोच में पड़ गये।

‘कृष्ण, कौरव राजकुमारों के दीक्षांत समारोह के समय मैंने अनेक वर्षों बाद पहली बार कर्ण को देखा था, जब उसने अर्जुन को द्वंद्वयुद्ध की चुनौती दी थी। मैंने उसको देखते ही पहचान लिया था, क्योंकि जन्म के समय उसने जो कवच-कुंडल पहने हुए थे, वे उस समय भी उसके पास थे। सूत अधिरथ को उसके पालक पिता के रूप में देखकर मेरा रहा-सहा सन्देह भी दूर हो गया था। उस समय दोनों भाइयों के बीच द्वंद्व युद्ध की संभावना देखकर मेरा स्वास्थ्य बिगड़ गया था। इसका सही कारण कोई नहीं समझ पाया था।’

‘बुआ, अगर उसी समय आपने यह रहस्य प्रकट कर दिया होता, तो बहुत अच्छा होता, क्योंकि तब यह युद्ध नहीं होता और सबसे बड़े पांडव के रूप में कर्ण हस्तिनापुर का सम्राट होता। उसकी सहायता के बिना दुर्योधन का साहस कोई विवाद करने का न होता।’

‘मुझमें यह रहस्य प्रकट करने का साहस नहीं था, पुत्र! मैं अपयश से डरती थी।’

‘हूं!’ कृष्ण ने सहमति में सिर हिलाया। ‘लेकिन अब क्या किया जा सकता है? अब इस रहस्य को प्रकट करने से क्या लाभ है, बुआ?’

‘पता नहीं इससे लाभ होगा या हानि, पर मैं चाहती हूँ कि किसी तरह कर्ण और पांडवों का युद्ध रोका जाये। मेरे अपने पुत्र सगे भाई आपस में लड़कर मरें, यह सोचकर ही मेरा हृदय फटा जाता है, कृष्ण!’

यह कहते हुए कुंती की आँखों में आंसू आ गए, जैसे रो पड़ेंगी. कृष्ण सोचविचार में लीन हो गए.

(जारी…)

— डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

2 thoughts on “उपन्यास : शान्तिदूत (सेंतालीसवीं कड़ी)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई, स्थिति तो बहुत गंभीर हो गई किओंकि कोई माँ यह नहीं चाहेगी कि उनके पुत्र आपिस में लड़ कर शहीद हो जाएँ . कृष्ण के लिए भी यह दुभिदा खड़ी हो गई . अगर यह रहस्य जगजाहिर हो जाए तो इस का किया रिईक्शन हो कोई नहीं जान सकता . कुंती के लिए भी इस भेद को छुपाना कितना मुश्किल रहा होगा . कृष्ण के लिए भी मुश्किल खाड़ी हो गई .

    • विजय कुमार सिंघल

      सही समझा है, आपने भाई साहब. कुंती के मन की दुविधा को समझा जा सकता है. एक साधारण लड़की भी विवाह से पूर्व गर्भ धारण करने में बदनामी से डरती है. फिर कुंती तो राजमाता थीं. उनका डरना समझ में आता है.

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