कविता : मर्यादा
‘तुमसे प्यार करता हूँ “
रोज रोज यह कहने से
क्या फ़ायदा
मेरे मौन को
समझती हो तुम
मेरे शब्दो से ज़्यादा
पर मन कहता हैं
प्रेम ग्रन्थ के अंतर्गत
शायद हो यह नियम
भी बाक़ायदा
सूर्य मुखी सी मेरी ओर
घुम जाती हो
“तुम सुंदर हो” यह
कहते कहते रुक जाता हूँ
बस तुम्हारी छवि को
आत्मसात कर लेता हूँ
बन कर एक़ आयना
अपनी वाचलता पर
शर्मिंदा हूँ ,अब से
अनुराग के भावों को
अपने हृदय की
दीवारो के भीतर ही
संभालकर रखूँगा
यह है मेरा तुमसे वायदा
प्रेम जितना
न हो जग जाहिर
उतना ही अधिक टिकता है
असीम प्रेम की होती है
यही एक मर्यादा
किशोर कुमार खोरेंद्र
बहुत अच्छी कविता, किशोर जी.
अच्छी कविता और इतनी सिंपल कि सीधी दिमाग में असिमिलेट हो जाती है. मज़ा आ गिया पड़ के .