दशहरा पर विशेष लेख – “अनेक मुस्लिम देशों में भी लोकप्रिय है रामलीला”
विश्व की प्राचीनतम सभ्यता का विकास प्राचीन भारत में हुआ , जो उस समय “ आर्यावर्त ” के नाम से प्रसिद्ध था | इसकी सीमाएं उन दिनों सुदूर पश्चिम में पाकिस्तान , अफगानिस्तान , से लेकर इराक की सीमाओं तक , उत्तर – पूर्व में नेपाल , इंडोनेशिया ,सिंगापूर ,वर्मा , बाली ,जावा , सुमात्रा और स्याम देश (वर्तमान थाईलैंड) आदि तक और दक्षिण में श्रीलंका तक विशाल भूभाग में फैली हुई थी | किसी भी शुभ कार्य के दौरान पुरोहितों द्वारा “ आर्यावर्ते , जम्बू द्वीपे , भारत खंडे ” का उदबोधन इसी देश – काल की ओर इंगित करता है | इसी प्रकार विश्व का प्राचीनतम महाकाव्य महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित “रामायण” है , जिसके नायक अयोध्या नरेश भगवान राम थे | अपने अद्वितीय गुणों और पराक्रम के कारण वे हिन्दू धर्मावलम्बियों में ईश्वर के अवतार के रूप में पूजे गये और उनकी जीवन गाथा रामलीला के रूप में जन – जन की सभ्यता एवं संस्कृति की प्रतीक हो गयी | कालान्तर में अनेक नये देशों के अभ्युदय के कारण भारत की सीमायें घट गयी | इसी के साथ ही बौद्ध, मुस्लिम व ईसाई जैसे अनेक धर्मो का प्रभाव भी बढ़ा , जिससे इस विशाल भूभाग के निवासी अनेक धर्मो तथा सम्प्रदायों में बँट गये | लेकिन इसे राम के सच्चरित्र का प्रभाव ही माना जायेगा कि अनेक धार्मिक , सामाजिक , राजनैतिक बदलावों के बावजूद इस प्राचीन भूभाग के अनेक निवासियों में आज भी भगवान राम प्रेरणा के स्रोत है और रामलीला हिन्दू धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बियों में भी सभ्यता एवं संस्कृति की प्रतीक बनी हुई है |
भगवान श्रीराम का मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप केवल भारत ही नही बल्कि दुनिया में आज भी प्रासंगिक है | उनके जैसा शिष्य , पुत्र , भाई , एक पत्नीव्रता पति , मित्र और अनेक मानवीय रिश्तों को पूरी गरिमा के साथ निभाने वाला कोई दूसरा चरित्र दुनिया के किसी और धर्म अथवा आख्यान में नही मिलता | दुनिया के जिस भी देश में हिन्दुओं की थोड़ी भी संख्या है ,वहाँ तो रामलीला होती ही हैं | किन्तु इंडोनेशिया , मलेशिया और सिंगापुर जैसे मुस्लिम धर्म प्रधान देशों में भी रामलीलाएं सभ्यता और संस्कृति का पर्याय बनी हुई हैं |
इस बात के अनेक प्रमाण है कि रामायण कालीन सभ्यता के अवशेष श्री लंका के अतिरिक्त , नेपाल , बाली , सुमात्रा , जावा , मलेशिया , सिंगापुर , थाईलैंड और चीन आदि दर्जनों देशों तक फैले हुए हैं | मुस्लिम और बौद्ध धर्म के भारी प्रचार – प्रसार के बावजूद इन देशों में राम के चरित्र के प्रति आस्था जनमानस में इस तरह गहरे बैठ गई है कि मस्जिद में नमाज पढ़ने वाला कलाकार रामायण के अन्य पात्रों का अभिनय करके वही संतुष्टि पाता है जो हिन्दुओं द्वारा अपने पूर्वजों को याद करके मिलती है | मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों में रामलीला के भव्य आयोजन होते हैं | जिन्हें सरकारी संरक्षण तो प्राप्त होता ही है , बल्कि बाकायदा संस्कृति विभाग द्वारा इसके उन्नयन के लिये बजट का भी प्रावधान किया जाता है | यहाँ ज्यादातर कलाकार मुस्लिम होते हैं | वे इस रामलीला में किसी धन के लालच में शामिल नहीं होते , बल्कि इसके पीछे उनकी मंशा अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाये रखने की होती है | वे आने वाली पीढ़ी को रामायण की कथा से प्रेरणा लेने की सीख देते हैं | इन मुस्लिम कलाकारों की मंडली दुनिया के अनेक देशों में सांस्कृतिक आदान – प्रदान के रूप में रामलीला का मंचन करती है | इन्हे रामायण के पात्रों के रूप में अभिनय करते देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव होता है | इन रामलीलाओ की एक विशेषता यह भी होती है कि इनमे कथानक और भाव तो रामायण के ही होते हैं किन्तु बोली , भाषा , पहनावा ,और अन्य क्रिया – कलापों पर उनके देश की स्पष्ट सांस्कृतिक छाप होती है | उनके देश , जाति ,समाज की परम्पराओं की भी अद्भुत झलकियां भी इनमे दिखाई पड़ जाती है | मैंने स्वयं बौद्ध देश थाईलैंड की अपनी यात्रा के दौरान नांगनूच गाँव में प्रायोजित रामलीला की झलकियाँ देखी थी और विश्वास कीजिये , उस अदभुत मौखिक दृश्य संयोजन की मधुर स्मृतियाँ हमेशा मेरे हृदय में संरक्षित रहेंगी |
दो वर्ष पूर्व ऐसे ही एक मुस्लिम धर्मावलम्बी सांस्कृतिक दल ने भारत व श्रीलंका समेत दुनिया के कई देशों का दौरा किया था और दिल्ली समेत कई स्थानों पर विशिष्ट लोगों की उपस्थिति में अपनी विशिष्ट शैली की रामलीला का प्रदर्शन करके भारतीयों का दिल जीत लिया था | भले ही दूसरी भाषा व बोली तथा वेशभूषा में उन्हें देखना अजीब लगता हो ,किन्तु उनकी रामलीला को जानना , समझना अत्यंत सुखद और रोमांचक होता है | ऐसा नही है कि मुस्लिम देशों में मुस्लिम कट्टरपंथी पंथी इसका विरोध नही करते | वहां भी रामलीला के कलाकारों को धमकियां मिलती है | उन पर अनेक बार हमले भी हो चुके है | किन्तु रामायण में सत्य की जीत का जो शाश्वत सन्देश है ,वही उन्हें अपनी इस सभ्यता संस्कृति को बनाये रखने की प्रेरणा भी देता है | …..और कट्टरपंथियों की धमकियां सिर्फ गीदड़ भभकी साबित होती है |
इंडोनेशिया के भ्रमण के दौरान एक पाकिस्तानी दल ने सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान रामलीला के अंशों के प्रदर्शन पर हैरानी जताते हुए पूछा था कि मुस्लिम होते हुए भी वे लोग हिन्दुओं की रामलीला क्यों करते हैं | यह तो कुफ्र ( धर्म के विरुद्ध ) होता है | वहाँ के सम्बन्धित मंत्री का जवाब और भी हैरानी भरा था कि हमने सिर्फ अपना धर्म परिवर्तन किया है | हम न तो अपने पूर्वजों को भूले हैं और न ही अपनी प्राचीन सभ्यता – संस्कृति को | यह जानना भी दिलचस्प है कि इन देशों के अनेक निवासी मुस्लिम या बौद्ध धर्मावलम्बी होने बावजूद यह मानते हैं कि उनके पूर्वजों का रामायण काल से कोई रिश्ता – नाता अवश्य रहा है | पौराणिक आख्यान बताते हैं कि बाली द्वीप के आस पास ही रावण की ननिहाल थी | कम्बोडिया के आस पास ही कहीं भगवान विष्णु का निवास क्षीरसागर था | श्रीराम उन्हीं के अवतार माने जाते हैं | पुरातत्वविदों ने भी अपनी खोज में इसकी पूरी सम्भावना जताई है |
कुल मिलकर इससे यही प्रमाणित होता है कि रामकथा में अंतर्निहित उद्देश्य किसी धर्म विशेष के आख्यान न होकर सारी दुनिया को बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश देने वाला सनातन सत्य है और रामलीला का मंचन उसका मान्य और परम्परागत प्रतीक | रामायण और रामलीला आगे भी सदियों तक मानवीय मूल्यों की रक्षा करने वाले लोगों के प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे |
बहुत अच्छा लेख , सुन कर हैरानी और ख़ुशी हुई , अगर ऐसा सारी दुनीआं में हो जाए तो शान्ति हो जाए .
अच्छा लेख. कई देशों में धर्म मुस्लिम होते हुए भी संस्कृति अभी तक हिन्दू ही है. यह गर्व की बात है.