हैप्पी बर्थ-डे बापू !
हे बापू! दो अक्टूबर को हम फिर तुम्हारा जन्मदिन मना रहे हैं। पहले भी मनाते रहेे हैं, आगे भी मनाते रहेंगे। क्या करें? मजबूरी है। सरकारी आदेश होता है। यदि सरकारी आदेश न हो तो इस देश के लोग स्वतंत्रता-दिवस और गणतंत्र-दिवस पर झण्डा तक न फहराएँ, फिर तुम किस खेत की मूली हो। कैलेंडर में जितनी तारीखें नहीं होतीं, उससे अधिक तो जयंतियाँ और पुण्यतिथियाँ यह देश मनाता है। क्यों मनाता है, इस पर मत जाइए। यह उसे खुद नहीं पता। फिर तुम तो ठहरे बापू्! राष्ट्रपिता!! महात्मा!!! शांतिदूत!!!! और न जाने क्या-क्या? फिर तुम्हारा जन्मदिन नहीं मनाएंगे तो क्या मेरा जन्मदिन मनाएंगे?
पर एक बात बताऊँ-मैंने भी अपनी जन्म तारीख के ऊपर अभी से गोला लगाना शुरू कर दिया है। मरने की तारीख मुझे नहीं पता नहीं तो मैं उस पर भी गोला लगा देता। ताकि लोगों को मेरी जयंती और पुण्यतिथि मनाने में दिक्कत न हो। तुम्हारा जन्मदिन मनाना किसी के लिए जरूरी हो या न हो पर हमारे नेताओं के लिए बहुत जरूरी है। तुम्हारे नाम के तंदूर में कोई राजनीति की रोटी सेंकता है तो कोइ्र्र पराठा, कोेई नाॅन तो कोई….। बस दिल्ली से सरकारी कबूतर उड़ता है कि जयंती मनाना है, और फिर मनाना पड़ता है। कोई भारी मन से मनाता है तो कोई बुझे मन से।
कभी-कभी तो लगता है कि तुम हमारे देश में पैदा नहीं होते तो तुम्हारा क्या बिगड़ता, क्या जाता तुम्हारा? तुम्हें गोलियाँ मिल गईं और हमें वह जिंदगी, जिसकी पीड़ा तुम्हारी तीन गोलियों से अधिक पीड़ादायक है। तुमने हे राम! बोलकर मुक्ति पा ली। पर हम कहाँ जाएँ? अब तो राम का नाम लेना भी राम के देश में समस्या हो गया है।
इस देश में माहौल बड़ा धार्मिक है। लोग पिंडदान और मतदान करने में लगे हैं। वैसे भी देश की जनता को मतदान और पिंडदान एक जैसा ही लगता है। मतदाता समझता है उसने मतदान कर पिंडदान की ही तरह अपने तथाकथित कर्तव्य से मुक्ति पा ली। आडंबरप्रिय देश में जिन्दोें को गोली मार दी जाती है, और मूर्दों को कौआ बनाकर हलवा-पुरी खाने का आमंत्रण भेजा जाता है। यदि तुम्हें भी स्वर्ग से उचित सवारी मिल जाए तो एकाद श्राद्ध अटैंड करने आ जाना। राजघाट के पवित्र प्रांगण में हम सफेद खादी धारण किए हुए बगुला भगतों बीच हम तुम्हारे अधनंगे बिंब को पहचान लेंगे, यह वादा हम आज तुम्हारे जन्मदिन पर करते हैं।
इस बार तुम्हारे जन्मदिन पर सरकारी कर्मचारी हर बार की तुलना में ज्यादा खुश हैं। कारण-तुम्हारा इस बार शनिवार को पैदा होना है। यदि पिछली बार की तरह रविवार को पैदा होते तो सबका मूढ़ बिगड़ जाता। सब यही कहते-”बुड्ढा, एक छुट्टी खा गया।“ लोगों की रूचि तुम्हारे पैदा होने में कम, छुट्टी में अधिक होती है। मैं खुद उस दिन सुबह दस बजे सोकर उठता हूँ, और तुम्हें श्रद्धांजलि देता हूँ कि ”चलो, अच्छा हुआ जो तुम महान हो गये नहीं तो मेरी एक छुट्टी का क्या होता।“ हमारा बाॅस न छुट्टी के मामले में सब बाॅसों की ही तरह न बड़ा कंजूस है। छुट्टी माँगने जाओ तो ऐसा मुँह बनाता है जैसे खट्टी डकार लेने पर मुँह में खट्टा-खट्टा पानी आ जाता है। तुम धन्य हो बापू्! सारी जिंदगी कमर में घड़ी लटका कर, बकरी का दूध पीकर, हाथ में लाठी लेकर भागते रहे, और देशवासियों की तकदीर में एक दिन का आराम लिख गये। तुम सचमुच त्यागी थे-वैश्णव जन तो तैने कहिए जे पीर पराई जाणे रे! तुम्हीं ने हमारी पीर समझी और एक छुट्टी दिला गये।
वैसे तुम यह सुनकर ज्यादा खुश हो सकते हो कि साठ साल बाद भी इस देश में पहले अधिक प्रासंगिक हो गये हो। अब देखो न, पहले तुम्हारे ये चेले जरा-सा खादी का टुकड़ा सिर पर रखकर गाँधीवादी बन जाते थे। किन्तु उनका स्थान अब चेलियों ने ले लिया है। कपड़े का टुकड़ा वे भी पहनती हैं। बस स्थान बदल गया है। तुम्हारे वस्त्र-त्याग का मंत्र यदि किसी ने समझा है तो इस देश की उर्मिलाओं, शिल्पाओं, करीनाओं, प्रियंकाओं, राखियों और मल्लिकाओं ने। परंतु उन्हें अफसोस है कि कोई उन्हें गाँधीवादी तो नहीं कहता ऊपर से उल्टे-सीधे फिकरे कसते रहते हैं।
मैं अफसोस की बात कर रहा था न! यदि तुम इस समय जीवित होते तो ये सफेद टोपीवाले तुम्हारे बंदर, तुम्हें थोड़ी पूछते। क्यों? भई तुम उन्हें वोट थोड़ी दिला सकते हो। वह तो अच्छा हुआ कि तुम समय रहते राम को प्यारे हो गये, वरना तुम्हारी फोटो न न्यायालयों में लगती न नोटों पर छपती। ईस्ट इंडिया कंपनी को खदेड़ने में तुमने अपनी हड्डियाँ गला दीं, पर तुम्हारे ये बंदर इंडो-इटालियन कंपनी का राज्याभिशेक करने में लगे रहे। स्वदेशी के लिए विदेशी कपड़ों की होली जलानेवाले जादूगर! क्या तुम इस देश की आत्मा पर लादा जानेवाला विदेशी चोला उतार पाते?
इस बार दो अक्टूबर को हमेशा की तरह राजघाट पर तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए सर्वधर्म समभाव के लिए प्रार्थना की जाएगी। भोली-भाली मछलियों को अपना शिकार बनानेवाले सफेदपोश बगुले, मगरमच्छी आँसू बहाकर धूर्तता का स्वांग करेंगे। हे अहिंसा के पुजारी! संभव है शांति की स्थापना के कहीं-कहीं गोलियाँ भी चल जाएँ। एक व्यक्ति ने तुम्हें सिर्फ एक बार गोलियाँ मारकर तुम्हारी हत्या की थी। लेकिन आज रोज चैराहों पर तुम्हारा कत्ल हो रहा है। और अब तो तुम्हारा वध अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होना शुरू हो गया है।
क्षमा करें! आज तुम्हारा जन्मदिन है और मैं यह कौन-सा मनहूस जिक्र लेकर बैठ गया। मक्कारों से भरे इस देश में मेरी ओर से भी बधाई स्वीकारो। जन्मदिन पर तुम्हें शत्-शत् नमन! हैप्पी बर्थ-डे बापू!!
शरद भाई , कुछ लोग कहते हैं , खामखाह हर बात पे नुक्ताचीनी नहीं करनी चाहिए .किया करें हम इंसान हैं , ऐसी बातें हम नहीं करेंगे तो देवता लोग करेंगे ? गांधी जी को सही शर्धान्जली सिर्फ मोदी जी ने ही दी है और किसी ने भी नहीं . टैली पर मोदी जी को झाड़ू से सफाई करते देखा , मन खुश हो गिया . फिर देखा मोदी जी के जाने के ठीक दो घंटे बाद लोग बोल रहे हैं कि लोगों ने फिर वोही गंद वहीँ फैंक दिया . कूड़े के बक्से भी ले गए लोग या कर्मचारी .किया फैदा हुआ मोदी जी के अभियान का ? एक टीवी चैनल पर गांधी जी के पुतलों का जो हाल देखा देख कर देश वासिओं को किया कहें ? मोदी जी अकेले किया कर लेंगे जब सब और बेडा ही गरक हो .
इसी बात का तो रोना है, भाई साहब. लोग कार्य का महत्त्व समझे बिना केवल रस्म निभाते हैं और फिर वही चाल बेढंगी.
बहुत अच्छा व्यंग्य.