उपन्यास : शान्तिदूत (बावनवीं कड़ी)
कुछ क्षण रुकने के बाद कर्ण ने आगे कहा- ‘भगवन्, अगर मैं पांडवों की ओर आ भी जाऊँ, तो इससे भी आपका उद्देश्य पूरा नहीं होगा, क्योंकि युधिष्ठिर अपना मुकुट मुझे सौंप देंगे और मैं इंद्रप्रस्थ का सिंहासन पा जाऊंगा, लेकिन अपने वचन से बंधा होने के कारण मैं तत्काल ही वह सिंहासन दुर्योधन को सौंप दूंगा। इससे कोई भी प्रसन्न नहीं होगा और दुर्योधन वह सारा राज्य पा जाएगा, जिसका अधिकारी वह नहीं है।’
‘आपका कथन सत्य है, वीरवर!’
‘इससे भी बढ़कर संसार में मेरी कितनी निन्दा होगी, यह सोचकर ही मैं कांप जाता हूं। लोग कहेंगे कि जीवन भर अर्जुन को परास्त करने की डींगें हांकने वाला कर्ण अवसर आने पर अर्जुन के बाणों से डर गया और कुंती के कथन का सहारा लेकर युद्ध क्षेत्र से भाग गया। वीर पुरुषों के लिए अपयश मृत्यु से भी भयंकर होता है, वासुदेव! मैं इसको सहन नहीं कर सकूँगा.’
‘आपकी यह बात भी सत्य है, अंगराज. लोग वास्तविकता को जाने बिना ही निंदा किया करते हैं.’
‘ऐसा करने से मुझे ही नहीं महारानी कुंती और अर्जुन को भी घोर अपयश मिलेगा. लोग कहेंगे कि कुंती ने अपने पुत्र अर्जुन को बचाने के लिए ही कर्ण के अपना पुत्र होने का झूठा दावा किया था. अर्जुन के बारे में भी लोग अनेक प्रकार की निंदनीय बातें करेंगे. वे कहेंगे कि अर्जुन ने कर्ण के हाथों मृत्यु से बचने के लिए यह सब नाटक किया था. अर्जुन जैसे वीर की ऐसी निंदा हो, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा, केशव!’
‘हाँ, लोग अवश्य ऐसी बातें करेंगे. आपका कहना पूरी तरह सत्य है.’ कृष्ण ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा.
‘इसलिए वासुदेव, मुझे कौन्तेय और पांडव कहलाने में कोई रुचि नहीं है. मैं राधेय हूँ और राधेय ही बने रहना चाहता हूँ. जिस माता ने अपने सगे पुत्र के रूप में मेरा लालन पालन किया है, उसे मातृत्व से वंचित करना अक्षम्य अपराध होगा. जीवन के इस अंतिम समय में अपनी माता बदलने में मेरी रुचि नहीं है.’
कृष्ण ने चौंककर कर्ण की ओर देखा. माता बदलने की बात करके कहीं वह कृष्ण पर ही तो व्यंग्य नहीं कर रहा है? कृष्ण ने अपनी पालन करने वाली माता यशोदा को छोड़कर जन्म देने वाली माता देवकी के पास जाने का निश्चय किया था. कर्ण को यह बात अवश्य ज्ञात होगी. हो सकता है वह कृष्ण पर व्यंग्य कर रहा हो. लेकिन कर्ण के स्वर में व्यंग्य जैसा कोई संकेत नहीं था, इसलिए कृष्ण इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि कर्ण ने यह बात स्वाभाविक रूप से ही कही है.
कर्ण का निर्णय स्पष्ट हो जाने के बाद कृष्ण ने वार्ता समाप्त करना उचित समझा. वैसे भी अब और कुछ कहने को शेष नहीं था. इसलिए समापन की भूमिका बांधते हुए कृष्ण ने कहा- ‘वीरवर, आपने जो निर्णय किया है, वह आप जैसे श्रेष्ठ योद्धा के लिए सर्वथा उचित है. आप महान हैं कि इतने बड़े राज्य का सिंहासन और महान कुरुवंश का उत्तराधिकारी कहलाने का लोभ भी आपको अपने वचन से नहीं डिगा सका. इसके लिए मैं आपको ह्रदय से साधुवाद देता हूँ. आपका मार्ग प्रशस्त हो. आपकी कीर्ति युग-युग तक अमर रहेगी.’
इसके उत्तर में कर्ण ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए और विनम्रतापूर्वक कृष्ण को प्रणाम किया. फिर कुछ सोचकर बोला- ‘वासुदेव, मैं आपसे एक प्रार्थना करना चाहता हूँ.’
‘आदेश कीजिये, अंगराज.’
‘मेरा निवेदन है कि मेरे जन्म के रहस्य का ज्ञान किसी भी प्रकार से महाराज युधिष्ठिर को नहीं होना चाहिए, केशव. यदि ऐसा हुआ. तो मैं जानता हूँ कि वे माता कुंती के वचनों पर विश्वास करके अपने शस्त्र और मुकुट मेरे पैरों में लाकर रख देंगे और मुझे बाध्य होकर सब कुछ दुर्योधन को सौंप देना पड़ेगा. इसलिए, भगवन इस बात को पूरी तरह गुप्त ही रखना, कम से कम मेरी मृत्यु से पहले तक.’
‘आप महान हैं, वीरवर! आपकी इच्छा का पूरी तरह सम्मान होगा. मैं इस रहस्य की चर्चा किसी से भी नहीं करूँगा.’
कर्ण ने पुनः दोनों हाथ जोड़कर आभार व्यक्त किया. इसके साथ ही कृष्ण ने विदा लेने के लिए कहा, ‘अंगराज, अब मैं सीधा उपप्लव्य नगर के लिए प्रस्थान करूँगा. आप भी अपना कर्तव्य करने के लिए हस्तिनापुर लौट जाइये.’
‘जो आज्ञा, केशव.’ यह कहकर कर्ण कृष्ण को प्रणाम करके अपने रथ की ओर चल पड़ा.
कृष्ण भी उसके अभिवादन का उत्तर देकर अपने रथ पर आकर बैठ गए और रथ उपप्लव्य नगर की दिशा में दौड़ पड़ा.
(जारी…)
— डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’
विजय भाई , कर्ण के किये मुसीबतें ही मुसीबतें खड़ी हो गई . ऐसी सूरत में कोई भी शख्स कन्फ़िऊज़ हो जाएगा . एक तरफ वोह माँ जिस ने उसे पाला पोसा और पियार दिया , दुसरी तरफ सगी माँ जिस ने उसे नदी में छोड़ दिया . एक तरफ दुर्योधन को दिया वचन , दुसरी तरफ सगे भाईओं से युद्ध करना . कृष्ण जी को तो हर तरफ का सोचना था . गंभीर समस्या है . आगे का इंतज़ार ……
आपका कहना सत्य है, भाई साहब. लोग बहुत से बंधनों से बंधे होते हैं और अपनी सीमा में कोई निर्णय करते हैं. कर्ण ने उस समय जो निर्णय किया था वह सही था. अन्य कोई भी व्यक्ति ऐसी परिस्थिति में यही निर्णय करता.
अब उपन्यास समाप्त होने वाला है. अगली कड़ी इसकी अंतिम कड़ी है. इसके बाद की कहानी युद्ध और विनाश से भरी हुई है. उसे लिखना मेरा उद्देश्य नहीं है.