कविता : पिछले बरस का पहला सावन
याद है मुझे
पिछ्ले बरस का
वो पहला सावन
अचानक ही बरसी थी
बूँदें झमाझम
बना था एक बहाना
साथ तुम्हारा हुआ था पाना
जाग उठी थी मन की
कोमल भावनाएं ,कामनाएं
चाहतों के हंसी सिलसिले ने
भुला दिए थे
जिंदगी से
गिले शिकवे
फिर
मौसम बदला, वक्त बदला
बहुत कुछ
अनकहा ही रह गया
तुम चले गए
यूँ लगा
जीवन से
सुरभी चली गई
अकेलेपन मे गुनगुनाती हूँ
वही जगजीत की नज्म,गज़ल
जिन्हे अक्सर गुनगुनाते थे तुम
हो गए हैं नयन सजल
आज भी है
वही पहला सावन
ऐ बारिश
ना जाने क्यों
बरसी नही तुम
आती जाती उमस भरी हवा
टपका रही कमरे में सूनापन
चारों ओर पसरा है सन्नाटा
बारिश की कोई आहट नहीं
तुम्हारी यादें और बारिश
मुझको लगती एक सी
बढा रही है
निस्सीम गहरी उदासी !!
Bahut hi sajiv prastuti hai
बहुत अच्छी कविता, डॉ भावना जी.
उदास सावन …………सुन्दर !!
ऐसे ही आगे बढ़ें, शुभकामनायें !!
very nice