कविता

“पतझड़ “

“पतझड़ ”

दूर बहुत दूर है वो प्यारा गाँव
साथ चलती है बबूल की छाँव

सूख गयी है स्नेह की नदी
रेत में धँस धँस जाते है पाँव

कितना प्राचीन है वो मंदिर
सीढ़ियाँ कहती है लौट आव

अमराई में कोयल उदास है
ये मौसम लाएगा बदलाव

हरे पत्तों के दिन लौट आएँगें
पीले पत्तों का होगा तब अभाव

जिंदगी की रफ़्तार बहुत तेज है
खुद से मिलवाता है यह ठहराव

आज मेरा साया भी मेरे साथ नहीं है
तन्हा कर देता है मधुमास से लगाव

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on ““पतझड़ “

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा गीत, किशोर जी.

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