“क्या तुम भी मुझसे …..”
“क्या तुम भी मुझसे …..”
तुम्हारे ख्यालों तक
मेरे ख्याल ..
तुम्हारे सपनों तक
मेरे स्वप्न ..
तुम्हारी खामोशी तक
मेरी खामोशी …
क्या कभी पहुँच पायेंगे …?
तुम्हारी परछाई से
मेरी परछाई ..
तुम्हारी तस्वीर से
मेरी तस्वीर …
तुम्हारी रूह से
मेरी रूह ..
क्या कभी मुलाकात कर पायेंगें ..?
ऐसे भी देह और मन का ..
तो कोई अर्थ ही नहीं हैं
तुम्हारी कविता में
मेरे शब्द ..
तुम्हारी पेंटिंग में
मेरे रंग …
तुम्हारे साज में
मेरे सुर ..
क्या कभी शामिल हो पायेंगे
वैसे भी ..
प्रेम के अभाव में ..
धरती का हरा पन
आकाश का नीलापन ..
दिखाई नहीं देते
क्या मै तुम्हारी
चेतना की नसों में बह सकता हूँ
क्या मै तुम्हारे
ह्रदय का स्पन्दन बन सकता हूँ
क्या मैं तुम्हारे
चिंतन का विषय बन सकता हूँ
मै तो तुमसे बेहद प्यार करता हूँ
क्या तुम भी मुझसे …..
उतना ही प्रेम कर सकती हो .?
किशोर कुमार खोरेंद्र
बहुत अच्छी कविता लगी , धन्यवाद .