कविता

एक ख्वाहिश

बारिश का मौसम है …. (^_^)
शाम भी रूहानी है …. (^_^)
तो बातें भी रूमानी हो …. (^_^)

जब – जब ,
मेरे चेहरे को सहला कर ,
चमकाती है ,
बारिश की बुँदें ….
लगता है सारा जहाँ ,
मेरे मुट्ठी में है ….
कितने गहरे छलके हैं ,
शाम के साए में क्षितिज के रंग ….
उन रंगों से ,
अपने रंगहीन अतीत में ,
रंग भरना चाहती हूँ ….
जैसे ….
रवि ,अवनी के ,
आगोश में पनाह लेता ,
शाम के साए में ….
वैसे ही ….
बदन , जिस्म से मिल जाए ….
उन्हें अपने बाहों में जकड़े रहूँ ,
और सज-संवर जाए

जीवन की शाम ….

उन्हें बताना चाहती हूँ ….
नभ में चमकता शाम का अकेला तारा ,
मेरे नुरानी प्रेम का प्रतिरूप है ….
वे आभास दें सुनने का ,मेरे विचारों को ….
रूपहले ख्यालों को …. धुंधलाए अहसासों को ….
अपने प्रियतम के आलिंगन में सिमटना चाहती हूँ …. !!

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

One thought on “एक ख्वाहिश

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूबसूरत कविता !

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