“प्यार का कमल”
“प्यार का कमल”
गमले मे खिला है
गुलाब का फूल
तुम्हारे हृदय में खिला है
मेरे प्यार का कमल समूल
इसलिए एक दूसरे को
कभी नहीं
हम दोनों पाएँगें भूल
मेरी चेतना की आँखों मे
तुम्हारा चेहरा
जाया करता है अक्सर झूल
मुझे पहचानते है
जैसे
जगमगाते तारे
सागर की लहरें
और नदियों के कूल
उसी तरह कोहरे सा
घेरे रहता है
मुझे तुम्हारे व्यक्तिव की
गरिमा का नूर
स्मृति में तुम रहोगे ही
एक दिन चला जाउन्गा
चाहे मैं अनंत दूर
मिलन विरह है
प्रकृति का
नियम क्रूर
किशोर कुमार खोरेंद्र
वाह ! वाह !! बहुत खूब !!!