वक़्त ऐसे ही अपना न ज़ाया करो
वक़्त ऐसे ही अपना न जाया करो
दूर रह कर हमेशा हुए फासले, चाहे रिश्ते क़रीबी कितने भी हों
कर लिये बहुत काम लेन देन के, बिन मतलब कभी तो आया करो
पद पैसे की इच्छा बुरी तो नहीं, मार डालो जमीर कहाँ ये है सही
जैसा देखेंगे बच्चे सीखेंगें वही, पैर माँ बाप के भी दबाया करो
काला कौआ भी है काली कोयल भी है, पर कोयल सभी को भाती है क्यों
सुकूँ दे चैन दे अपने दिल को भी जो, मुहँ में ऐसे ही अल्फ़ाज़ लाया करो
जब सँघर्ष हो तब ही मँजिल मिले, सब सुविधाजनक यार जीवन में नहीं
जिस गली जिस शहर में चला सीखना, दर्द उसके मिटाने भी जाया करो
यार जो भी करो तुम सँभलकर करो, सर उठे गर्व से ना झुके शर्म से
वक़्त रुकता है किसके लिए ये “मदन”, वक़्त ऐसे ही अपना न ज़ाया करो
ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना
बहुत अच्छी कव्वाली !