“अजीज़ “
“अजीज़ ”
खुद से ही बाते कर लेता हूँ
मैं ही हूँ अपना अजीज
कितनी ही हो परिस्थितियाँ विपरीत
पर छोड़ता नहीं हूँ मैं ..उम्मीद
सच्चाई की राह पर तन्हा ही चलता हूँ
सभी चेहरे लगते हैं अपरिचित
मंझधार में संग मेरे
न पतवार हैं न नाव हैं न ही नाविक
प्रलोभन देती सी
लहरें करती हैं मुझे भ्रमित
मै ही कभी हो जाता हूँ
आकाश सा व्यापक
और कभी धरती सा सिमित
पंक में मै ही खिल उठा हूँ
पंकंज सा
मन का सौन्दर्य लिये नैसर्गिक
किशोर
बहुत बढिया भाई साहिब .
thank u gurmel ji