“फासिला”
“फासिला”
इज़हारे इश्क़ का अवसर खो दिया
उसे तुम्हारी आँखों ने कह दिया
चार सीडियों का फासिला रहा
उसे ताउम्र मैने निबाह दिया
शिकवा करूँ भी तो अब किससे
इश्क़ ने बाक़ायदा मना कर दिया
उसकी रूह में मै हूँ या मेरी रूह में वो
इस बदगुमाँ ने मुझे अमर कर दिया
इसी तरह बीत गये कई जनम
हिज्र ने मुझे हर बार जगा दिया
किशोर कुमार खोरेंद्र
हर अक्षर एक मोती है .
thank u gurmel ji