“अंजाम”
“अंजाम”
बातें अधूरी छोड़ कर चली गयी
जीने की फिर से आरज़ू रह गयी
दूर जाती निगाहें कुछ कह गयी
गहरी खामोशी में सदा रह गयी
तन्हाई का रंग रूप उन्ही सा है
साथ मेरे उनकी परछाई रह गयी
उनकी याद है अब मेरी हमसफ़र
कहानी थोड़ी सी बची रह गयी
इब्तिदाये इश्क़ का कभी न हो अंत
यह एक हसरत अंजाम की रह गयी
किशोर कुमार खोरेंद्र
अच्छी ग़ज़ल.