एक सच्चा इंसान बन
जो नहीं है उसको पाने की चाहत है,
जो है उसको पाने का सकून नहीं |
पाने की चाहत में दिन-रात एक करते है,
गुणा-भाग करते किसे बनाये किसे मिटायें |
फायदा किससे है किससे है नुकसान,
सोचते है सदा मिलेगा हमें कहा से मान सम्मान |
दूसरों की बढ़ती देख लकीर,
चाहते है बना दे उसे फकीर |
अपनी नहीं चाहते जितना बड़ा करना,
उससे अधिक है चाहत दूजों कों मिटा देना |
ओ मानव मन जितना है उतने में संतोष कर,
ज्यादा पाने की जिद में मन कों ना अशांत कर |
खुद जी सकून से भरा जीवन,
दूसरों को भी चैन से जीने दे |
ज्यादा पाने की होड़ में ना तु मशीन बन,
खुशियाँ मिल बाँट रह खुशी से एक सच्चा इंसान बन |
||सविता मिश्रा||
अतिसुन्दर कविता दीदी
शक्रिया दिल से
अच्छी कविता, बहिन जी. अच्छा सन्देश देती है.
दिल से आभार भैया .