कविता

एक सच्चा इंसान बन

जो नहीं है उसको पाने की चाहत है,
जो है उसको पाने का सकून नहीं |
पाने की चाहत में दिन-रात एक करते है,
गुणा-भाग करते किसे बनाये किसे मिटायें |
फायदा किससे है किससे है नुकसान,
सोचते है सदा मिलेगा हमें कहा से मान सम्मान |
दूसरों की बढ़ती देख लकीर,
चाहते है बना दे उसे फकीर |
अपनी नहीं चाहते जितना बड़ा करना,
उससे अधिक है चाहत दूजों कों मिटा देना |
ओ मानव मन जितना है उतने में संतोष कर,
ज्यादा पाने की जिद में मन कों ना अशांत कर |
खुद जी सकून से भरा जीवन,
दूसरों को भी चैन से जीने दे |
ज्यादा पाने की होड़ में ना तु मशीन बन,
खुशियाँ मिल बाँट रह खुशी से एक सच्चा इंसान बन |
||सविता मिश्रा||

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

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