छोटा सा मेरा जीवन
शिव शिवा को मेरे उदगार हैं अर्पण
जिंदगी को कैसे लिखूं मैं
मेरा सच जैसे खुली हुई हो मेरे हृदय की किताब
पढ़ लो सब ..मेरे मन की बात
मैं मन ही मन शिव जी पर छंद रचूं
रचती ही जाऊं ..रचती ही जाऊं
आते हैं वे शिव भक्तों को पसंद
क्षण क्षण लिखती हूँ मैं शिव जी का भजन
करती हूँ मन ही मन शिव जी का अनूठा कीर्तन
अब मैंने लिया हैं पहचान
ध्यान मे शिव जी को लिया है जान
सजा रही हूँ अपने हृदय को
शिव जी के लिए कर छंदों का सृजन
मन मे हैं मेरे छटपटाहट
अंधेरों से उजालों की और पहुंचकर लिख रही हूँ
शिव का भजन
मेरा ह्रदय भक्ति भाव से भरा हुआ हैं
जैसे लग रहा हो मुझे
शिव हो सम्पूर्णता के स्वर्णिम खान
शिव जी हमारे ह्रदय मे ,आँखों मे
ज्योति बन कर जल रहे हैं
खुशियों के मोतियों के अश्रु रूपी बूंद टपक रहे हैं
ऐसे लग रहा हैं शिव के सागर से
अमृत को गागर मे भर रही हूँ
प्रेम की ज्योति मैने जो बचपन से संजोयी हैं
वही अब छोटा सा दीपक बन , मेरे सारे ह्रदय मे
छोटी छोटी खुशियों से जुड़कर उल्हास भर गया हैं
और सत चित्त आनंद सा हो गया हैं
संसार के तूफानों के मध्य रहकर बन गयी हूँ
में शिव जी की भक्तन
भक्त वत्सला बनकर शिव प्रेम मे डूब गयी हूँ
सूरज दे रहा हैं रोशनी मुझे
उन किरणों से तपकर बन गयी हूँ मैं शिव तपस्विनी
मैं शिव भक्ति कर रही हूँ
प्रतिदिन शब्दों के द्वारा
करती हूँ शिव जी की भक्ति का वर्णन
लिखती हूँ प्रतिदिन भजन
करती हूँ अपने उदगारों को शिव चरणों मे अर्पण
बरखा ज्ञानी
बहुत सुन्दर भाव !
dhnyvad vijay kumar singhal ji
shukriya aadarniy vijay kumar singhal ji