मैं क्यों उसे चाहने लगा हूँ”
मैं क्यों उसे चाहने लगा हूँ
मेरी हथेलियों पर बनी वो अब
नयी एक भाग्य रेखा हैं
न मैंने उसे परखा
न उसने मुझे देखा हैं
बस उसकी आवाज़ को
मैने सुना है
फिर भी
शब्दों से बनी दो राहो ने
इस मोड़ से एक नए
पथ कों चुना हैं
जिसकी कोई मंजिल नहीं
इन्द्रधनुष के रंगों ने
हमें एक ही ख्याल में बुना हैं
कभी तुम मेरी कविता बन जाना
कभी लिखने के लिये गजल
मेरी याद कों तुम बार बार दुहराना
हमें जमीन पर रहकर ही
प्रेम के आकाश कों छूना हैं
देह के भीतर
बहता एक पाक दरिया हैं
सच कों पाने का
बस यही तो एक जरिया हैं
इसी जनम में
माया के छलों के भरम को
दूर करने के लिये
प्यार को जीकर
साबित करना पूरा हैं
किशोर कुमार खोरेंद्र
देह के भीतर
बहता एक पाक दरिया हैं
सच कों पाने का
बस यही तो एक जरिया हैं
बहुत खूब
बहुत खूब
shukriya anshu pradhan ji
कविता के भाव अच्छे हैं, पर स्पष्ट नहीं हैं. या शायद मेरी ही समझ में कमी है.
अच्छी कविता भाई साहिब .