लक्ष्मी की दशा
सागर मंथन के पश्चात् क्षीरसागर का वातावरण प्रायः शांत और सौम्य ही रहा करता था। भारतीय राजनीति में दल के शीर्षस्थ एवं तटस्थ नेता की तरह अपनी भूमिका निभा कर शेषनाग अब अटल जी और आडवाणी जी की तरह अपनी ड्यूटी पर तैनात हो गए थे। भगवान विष्णु सागर मंथन से प्राप्त लक्ष्मी के साथ शेष-शय्या पर आराम फरमाते रहते। लक्ष्मीपति की पग-पीड़ा उनका पीछा ही छोड़ती थी। देवी लक्ष्मी भी स्वामी की सेवा में रहतीं। रावण और कंस की समस्या निपटाने के बाद इस समय नारायण निश्ंिचत से थे। कभी-कभी आँखें खोलकर मृत्युलोक की ओर देख लेते। पर नीचे राजनैतिक हलचल और उठापटक के अलावा उन्हें ऐसी कोई समस्या नहीं दिखती जिसके लिए परेशान हुआ जाए। राजनीति का बहुत आनंद वे कृष्णावतार में ले चुके थे। दूसरे वे आज की टुच्ची राजनीति में अपने को आउट डेटेट मानते थेे। राजनीति में आकर वे किसी के फटे में टाँग डालना अब उन्हें भाता भी न था। कभी-कभी नीचे के अलकायदा, तालिबानी, नक्सलवादी तथा आतंकवादी आंदोलन देख शेषनाग उन्हें बार-बार उचकाता रहता कि ‘चलिए, कलयुग का टूर पूरा कर लिया जाए’। किंतु उन्हें लगता कि अभी सही समय नहीं आया है। वैसे भी इस समय लक्ष्मी जी दीपावली की वसूली पर भक्तों से मिलने भारत के दौरे पर थीं।
उस दिन क्षीरसागर में प्रलयंकारी लहरें उठने लगीं। यूं लगा जैसे आतंकवादी हमला हुआ या सुनामी आ गयी शेषनाग किसी वफादार ‘डाॅबरममैन’ की तरह भौंकने लगा। भगवान विष्णु की नींद में व्यवधान उत्पन्न हुआ। शेष को पहली बार उन्होंने इतना विचलित जो देेखा था! अतः उन्होंने भी सुदर्शन में चाबी भरकर अंगुली पर चढ़ा लिया। अब वे किसी भी विपत्ति का सामना करने के लिए तैयार थे।
किंतु यह क्या? देखते ही एक काली-कलूटी, मैली-सी करुण नारी चली आ रही है। प्रभु चकरा गये। क्षीरसागर के प्रांगण में इस तरह का निद्र्वंद्व विचरण देवी लक्ष्मी ही कर सकती थीं। पर…नारायण ने पहली बार गरुड़ से उसकी नज़रों के इस्तेमाल की कही। गरुड़ बोला-“प्रभु, क्षमा करें। जीवन में पहली बार मेरी आँखे किसी को पहचानने में धोखा खा रही हैें।”
नारायण, गरुड़ तथा शेषनाग तीनों हैरान! अचानक वह नारी आकर प्रभु के चरणों में गिर गयी। उनके पैर पकड़ फूट-फूटकर रोने लगी। उसकी आवाज़ की खनक तथा हाथों की पकड़ प्रभु को कुछ परिचित-सी लगी। गौर से देखा तो मुँह खुला का खुला रह गया-”अरे देवी तुम! ये क्या हाल बना रखा है? कहाँ से चली आ रही हो?कुछ लेती क्यों नहीं?“
”मृत्युलोक से़…..“
प्रभु को मज़ाक सूझी-”अरे कहाँ तो तुम हमें काला-काला कह कर छेड़ती रहती थीं और कहाँ तो आज स्वयं ही हमारे रंग में रंगी हुई हो। अच्छा मृत्युलोक की कोई गोरी करनेवाली क्रीम लगा ली होगी जो तुम्हें सूट न हुई। है ना?“
“आपको ठिठोली सूझ रही है। अरे वहाँ पर मेरा यही रूप प्रचलित और सम्माननीय है-काला वाला। उस गोरे और चमकदार को तो कोई पूछता ही नहीं। तिजोरी हो सूटकेस, व्यापार हो या नौकरी, काम पाप का हो या पुण्य का मेरे इसी रूप की महिमा है वहाँ स्वामी। भक्तों को नारी तो श्वेत चाहिए किंतु मैं उन्हें श्याम ही ज्यादा पसंद आती हूँ। बड़ी अजब रंगभेद नीति है। गोर-काले का जितना भेद मैंने भारत में देखा उतना कहीं और न दिखा। मेरे गोरे रूप के उपासक तो वहाँ कंगालों की श्रेणी में आते हैं। और आप तो जानते हैं मुझे कंगालों से चिढ़ है। इसलिए अब आप भी मुझे रूप में स्वीकारिए स्वामी।“ लक्ष्मी जी ने अपनी आपबीती सुनाई।
नारायण ने सोचा, ‘अब समझी काला होने का दुःख! बहुत ठिठोली करती थीं मेरे काले रंग की। मैं तो पैदायशी काला ठहरा पर इन्हें तो इनके भक्तों ने ही काला कर दिया।’
अच्छा कुछ और सुनाओ मृत्युलोक की, प्रभु ने विषय बदलना चाहा-सुना है बड़ी तरक्की हुई है वहाँ?
“पूछिए मत नाथ! आपके इस शेषनाग के भाई शेषन ने अच्छे-अच्छों की छुट्टी कर रखी थी एक समय में । जिसके सिर पर तन जाता था उसी का बंटाढार। एक से एक यंत्र और हथियार हैं वहाँ। अब राक्षस भी ऐसे-ऐसे कि पूछिए मत। गले में बम बाँधते और अपना ही संहार कर लेते हैं। उन्हें संहार करने के लिए अब आपकी आवश्कता भी नहीं रह गयी। आप अपने इस सुदर्शन को उंगली में नचाते बैठिए यहाँ। आपके इस गरुड़ और गजराज को कोई नहीं पूछता वहाँ। सब कार में घूमते हैं।” लक्ष्मी जी ने बताया।
“तो आपने की उन वाहनों यात्रा?” विष्णु जी ने पूछा।
”कहाँ स्वामी। भक्तगण मुझे खुले वातावरण में निकलने ही नहीं देते। हमेशा आयकर वालों के डर के कारण छिपा कर रखते हैं।“ प्रभु समझ गये और धीरे से मुस्कुरा दिए। लक्ष्मी जी नारायण की इस हँसी का रहस्य न समझ सकीं। देवी ने काफी जानना चाहा उस मुस्कुराहट का भेद पर वे शांत ही रहे। क्योंकि वे जानते थे कि मृत्युलोक पर उनके भक्तगण उन्हें उल्लू पर बैठाकर उल्लू बनाते हैं तथा उन्हीं के अनेक हाथियों ने उन्हें अपने पैरों तले दबाकर रखा है, तो वे अगली बार मृत्युलोक के लिए उन्हीं का गरुड़ माँगेगी और नया वाहन देखकर पुलिसवाले या तो उन्हें आतंकवादी समझेगें या उनके वाहन का चालान बना देंगे।
प्रभु ने लक्ष्मी जी से बस इतना ही कहा-”अब अगली बार मृत्युलोक का भ्रमण किसी सायकिल या रिक्शे पर करना।“ और पुनः मुस्कुराकर शांत हो गये।
बहुत अछे .
हा…हा…हा….हा… पढ़कर मजा आ गया. आपने काले धन वालों पर अच्छा व्यंग्य किया है.