“बदले में “
“बदले में “
जितना किसी को चाहोगे
बदले में
उतना ही दुख पाओगे
मिलन की कोमल पंखुरियाँ
झर जाती हैं
आख़िर बचे हुऐ
विरह के नुकीले काँटों में ही तो
खुद को उलझाओगे
चूर् चूर हो जाता हैं
सुकुमार हृदय
शीशे सा ही तो फुटोगे
सपनो के परों को कुतर देती है
बेरहम दुनियाँ
रंग बिरंगे अरमानों की तितली हो कर भी
कितनी दूर तक उड़ोगे
दो इंच के फ़ासले पर ही
मंज़िल ओझल हो जाती हैं
इस जन्म से आगामी जन्मो तक
प्रेम के उसी पथ पर कितनी बार चलोगे
थोड़ी सी उपेक्षा से धराशायी हो ज़ाता है
रिश्तो का खूबसूरत महल
दर्द को सीने मे छुपाए और कितना मुस्कुराओगे
आज ज्न्म हुआ कल मरना है
जो पाया है उसे एक दिन खोवोगे
किशोर कुमार खोरेंद्र
अच्छी कविता.
shukriya vijay kumar singhal ji