कविता

गाँव के इस कमरे

एक कंदील ..जिसे अँधेरे में रहने की आदत हैं

औंधे लेटे हुए पुराने कपड़ों से भरे कुछ बोरे ..जिनके मुंह सीले हुए हैं
एक मेज ..धूल से सनी हुई
दो कुर्सियां लोहे की ..जिन पर कोई बैठता नहीं हैं
एक लकड़ी की आलमारी ..खाली खाली
एक खाट , कुछ गद्दे और चादर
तीन पेटीयाँ लकड़ी की ..जिनमे ताले लगे हुए हैं
चाबियों का पता नहीं
दीवार पर चिपकी हुई मधुबाला की तस्वीर
एक उंघती सी घड़ी
सालों पुराना एक कैलेण्डर
छत पर जालों से घिरा एक लटकता हुआ पंखा
कोने में बना एक घोसला
पेंट के डिब्बे
पुरानी पुस्तकें ..रामायण ,गीता ,और अकबर बीरबल ..की


गाँव के इस कमरे में मुझे
इन सबने मुझे स्वीकार किया या नहीं ..
मुझे मालूम नहीं…?
पर मै भी एक पुराने हो चुके सामान की तरह आज इनके बीच हूँ
जब मै नहीं रहूंगा
लोगो की तरह ..ये भी ..मुझे भूल जायेंगे ..एक दिन
इनमे और इंसानों में कुछ फर्क हैं क्या ..?


छुटी हुई कमीज की तरह टंगा रह जाऊँगा खूंटी पर
अपनी चप्पलों सा ठहरा हुआ
अपनी ऐनक के कांच में अधूरे सपनो के संग
दिखाई देता हुआ सा
किशोर

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.