कविता

“पीड़ा “

 

अपने आप से कतराता रहा
आईने के सामने आते ही
मैंने अपना मुंह फेर लिया
सूरजमुखी का चेहरा
उदास सा लगा
हो गया हो
उसे जैसे पीलिया

पहली बार महसूस हुआ
पौधों में गुलाब के अलावा
ढेरों नुकीले कांटें भी होते हैं
साँझ होते ही
झर जाती हैं पंखुरियाँ

काँटों से चूभ गयी थी
धुप की नर्म उँगलियाँ
बहार के सिवाय
पतझड़ का मौसम भी होता हैं
जिसमे लापता हो जाती हैं
पीली और शुष्क पत्तियाँ

कितनी व्यक्तिगत और गोपनीय
होती हैं प्रत्येक मनुष्य की पीड़ा
चाहकर भी उसे वह
बांट नहीं सकता
अकेले ही अपने दुखों को
पड़ता हैं उसे जीना

प्रेम को महसूस करने कि भी
क्या होती हैं एक सीमा
आज झंकृत नहीं हुई
मेरे मन की वीणा

शरीर औए मन के दर्द से
अछूता और परे हैं
रूह से रूह का पवित्र नाता
यह बोध होने पर भी
आज नहीं लिख पाया
मैं एक नयी कविता

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.