माँ को सिखाया कम्प्यूटर पर कार्य करना
इस वक्त मेरे हाथ में एक बहुत पुरानी कॉपी है जिसमें एक बच्चे ने अपनी बेहद खराब हैंडराइटिंग में कुछ अक्षर लिखने की कोशिश की है। शायद उसे ‘क’ अक्षर लिखने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन ‘क्ष’ और ‘ज्ञ’ उसे बहुत भयानक लगते थे। अगर उसका बस चलता तो वह फौरन इन दोनों अक्षरों को वर्णमाला से बाहर निकाल देता। उसने कुछ पृष्ठों पर आम और सेब जैसे फलों के चित्र बनाने की कोशिश की है लेकिन इन्हें देखकर हंसी आती है क्योंकि ये किसी भी नजरिए से आम या सेब जैसे नहीं लगते। यह एक ऐसे बच्चे की कॉपी है जिसने कुछ दिन पहले ही स्कूल जाना शुरू किया था। माफ कीजिए, वह बच्चा मैं हूं। तब मेरी मां गायत्री देवी मुझे हाथ पकड़कर उन अक्षरों को लिखना सिखाती थी जो मुझे बहुत कठिन लगते थे।
शायद अब मैं भी बड़ा हो गया हूं क्योंकि अब मां मुझसे कुछ नहीं लिखवाती। मुझे उसके हाथों की हल्की-फुल्की मार खाए भी कई वर्ष हो गए। इन वर्षों में उसकी तकनीकी योग्यता बस इतनी ही बढ़ी है कि जब मोबाइल पर किसी का फोन आता है तो वह बात कर सकती है। उसे नंबर डायल करने की ज्यादा जानकारी नहीं है। और एसएमएस की तो बात ही छोड़ दीजिए। आज मैंने इनबॉक्स में 50 से ज्यादा मैसेज डिलीट किए हैं जो कंपनी वाले समय निकालकर हमें भेजते रहते हैं। उसे अपने मनपसंद टीवी चैनल का नंबर याद नहीं लेकिन वह इतना जानती है कि उस पर किस रंग का कैसा निशान है।
कुछ दिनों पहले मैंने और मेरी मां ने एक समझौता किया था। मां ने मुझे कहा कि मैं रोज 10 रुपए उस गुल्लक में डालूं जो वह इस साल के शुरुआती दिनों में लेकर आई थी और वह अभी भी खाली है। मैं इस बात के लिए तैयार हो गया लेकिन एक शर्त के साथ। वह शर्त थी – मैं रोज गुल्लक में 10 रुपए डाल दूंगा, बस आपको इसके लिए शाम को टीवी सीरियल देखने के समय में कटौती करनी होगी और उस समय मुझसे कम्प्यूटर सीखना होगा।
मां के लिए यह शर्त संयुक्त राष्ट्र संघ के किसी समझौते से भी ज्यादा कठिन थी। उसने शुरुआत में आनाकानी की …. मैं कैसे सीख सकती हूं …. उम्र देखी है मेरी …. यह कम्प्यूटर सीखने का वक्त थोड़े ही है … मुझे तो मोबाइल फोन भी नहीं चलाना आता और तू बात कर रहा है कम्प्यूटर की … तुझे पैसे डालने हैं तो डाल या फिर साफ मना कर दे। लेकिन मैंने हार नहीं मानी और किसी तरह मां को मना ही लिया। मैं रोज थोड़ा-थोड़ा समय निकालकर कम्प्यूटर सिखाने लगा और गुल्लक में पैसे भी डालने लगा। मैं दुनिया का पहला ‘टीचर’ हूं जिसे अपने ‘स्टूडेंट’ को पढ़ाने के साथ ही उसे पैसे भी देने पड़ते हैं।
इस दौरान मुझे कम्प्यूटर की कई फाइल और फोल्डर के नाम यूनीकोड के जरिए हिंदी में लिखने पड़े, क्योंकि मेरी मां सिर्फ हिंदी पढ़ सकती है। उसकी मेहनत का नतीजा है कि अब वह आसानी से खुद कम्प्यूटर स्टार्ट कर सकती है, फोल्डर से भजन और धार्मिक फिल्में देख सकती है और उसे क्रमबद्ध ढंग से बंद भी कर सकती है। उसे बुनियादी जानकारी हासिल हो गई है। उसके मुताबिक डेस्कटॉप शब्द सबसे ज्यादा कठिन है। इसका कोई और आसान-सा नाम होना चाहिए। इसी तरह हमने रिसाइकल बिन का भी मारवाड़ी भाषा में दूसरा नाम रखा है। कुल मिलाकर नतीजा यह कि मेरी स्टूडेंट श्रीमती गायत्री देवी शर्मा कम्प्यूटर साक्षरता विषय में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो गई हैं। और इस दीपावली तक उनकी गुल्लक भी पूरी भर जाएगी।
कल शाम मां ने मेरी दो ई-बुक (चार बातों का बेसब्री से इंतजार और नाक कटाने से पहले भागी शूर्पणखा) पढ़ी। उसे अचंभा हुआ कि ये किताबें सच में मैंने ही लिखी हैं। बदले में मुझे शाबासी मिली जो मेरे लिए दुनिया के सभी पुरस्कारों से ज्यादा बड़ा इनाम है। मुझे यह फायदा हुआ कि मेरा एक पाठक बढ़ गया है।
सबक : अगर आप मोबाइल फोन चला सकते हैं तो कम्प्यूटर भी चला सकते हैं। अगर आप मोबाइल फोन नहीं चला सकते हैं तो निश्चित रूप से कम्प्यूटर चला सकते हैं।
राजीव शर्मा
संचालक
गांव का गुरुकुल
बहुत प्रेरक संस्मरण ! आपको और आपकी माता जी को प्रणाम !
बहुत रोचक कहानी ….. अच्छा लगा ….. गर्व भी हुआ ….