तुम कहती हो…..”
तुम कहती हो…..”
तुम कहती हो सादगी और प्रेम से भरी
एक ऐसी कविता सुनाओं
जिसमे कहानी कम …सच्चाई ज्यादा हो
तुम कहती हो एक ऐसी कविता सुनाओ
जिसमे शब्द न हो
जिसमे छंद न हो
केवल भाव हो
तुम कहती हो ऐ ऐसी कविता सुनाओ
जो सरस हो
और कभी खत्म ही न हो
जिसे मेरे बिना बोले तुम सुन लो
तुम कहती हो एक ऐसी कविता सुनाओ
जिसमे शरीर का नहीं
रूह की देह का वर्णन हो
जिसमे रूह की देह के मन का चिंतन हो
जिसे सुनकर
तुम्हारे ह्रदय का प्रेम ….
भाव विभोर होकर
तुम्हारी आँखों से आंसूं की तरह छलक आये
उस नि:शब्द
उस नि:;स्पृह
उस नि:स्वर ,उस नि:स्वार्थ ..कविता कों
तुम
मेरी आँखों की गहन ख़ामोशी के कोरे पन्नों पर
पढ़ सकती हो
किशोर कुमार खोरेन्द्र
मज़ा आ गिया पड़ के .
shukriya gurmel ji
अच्छी कविता !
thank u vijay ji