नूर
वो हमारे दिल में रहते है
हम उनकी नज़र में रहते है
उन्हे भटकती लहरों सा तलाशते है
इसलिए हम बीच मंझधार मे रहते है ”
हिमालय की वादियों सा बेमिशाल हुश्न है उनका
हम बादलों सा इश्क के सागर से उमड़ा करते है
पानी हो या रेत वहाँ सब कुछ मिट जाता है
लहरो से रेत पर उनका नाम लिखा करते है
चाँद की तरह जगमगाता उनका नूर है
शबनम सा उनकी चाँदनी को ओढ़ा करते है
किशोर कुमार खोरेंद्र