“कवि”
देख कर
तुम्हारी सुंदर छवि
मै बन गया हूँ कवि
अब तुम्ही
हमदर्द हो हमराह हो
तन्हा था कभी
तुम्हारी आँखों में नूर है
तुम्हारे ओंठो पर हैं
अनुपम हँसी
झटक कर ज़ुल्फो को
यूँ मुड़कर मुझे
देखा न करो
मैं भी आदमी हूँ
मुझमे भी है कमी
तुम्हारे आसपास ही
मंडराता रहता हैं
मेरे मन का भँवरा
तुम्हें इसका गुमान
हैं भी या नहीं
किशोर कुमार खोरेंद्र
वाह ! वाह !!