प्रकाश पर्व फिर आया है
१. आलो आवार फिरिये एलो
आलो आवार फिरिये एलो, दु:खेर बेला चलिये गेलो;
सुखेर कली खुलिये गेलो, काँटार कान्ति सूखिये गेलो ।
निराशाय रस भरिये गेलो, आशार दूत पाशे ताकाइलो;
आँखी मेले चेये गेलो, अश्रुर धारा सरिये गेलो ।
मरु भूमिते जागिलो तृण, सब्ज़ हये गेलो धरार आँचल;
पुष्पे साजाइते लता पता एलो, वाताशे कुहके पुलक भरे दिलो ।
अनमना मन सुनयना हलो, सुर सुधाइलो स्वरउ पाइलो;
नृत्य करिलो नत हइलो, मृत्युर गतिते जीवन पाइलो ।
असुरेर मन सुरे भरे गेलो, वृत्ति अशुभ शुभ गति पेलो;
मृग मरीचिकाते ‘मधु’ ओरा पेलो, आलोकेर अतिथिके जाना-शोना हलो ।
(रचना दि. १२ अगस्त २०१४ मंगलवार)
प्रकाश पर्व फिर आया है (हिन्दी रूपान्तर)
प्रकाश पर्व फिर आया है, दुःख की वेला चली गयी है;
सुख की कली खुल गयी है, काँटों की कान्ति सूख गयी है.
निराशा में रस भर गया है, आशा का दूत पाश आकर ताक रहा है;
स्नेह से आँख मिला कर देख गया है, अश्रु की धारा को दूर कर दिया है.
मरू भूमि में त्रण जग गए हैं, धरा का आँचल हरा हो गया है;
लता पात पुष्प सजाने आगये हैं; वाताश कुहक कर पुलक भर दी है.
अनमना मन सु- नयना हो गया है, सुर सुधाकर स्वर पागया है;
नृत्य करके नत हो गया है, मृत्यु की गति में जीवन पा गया है.
असुरों का मन सुर से भर गया है, अशुभ वृत्तियाँ शुभ गति पा गयीं हैं;
मृग मरीचिका से वे ‘मधु’ पा गयीं हैं, आलोक के अतिथि से परिचय होगया है.
(स्वरचित हिन्दी रूपान्तर दि. २३ अक्तूबर, २०१४ )
बंगला कविता और उसका हिन्दी भावानुवाद प्रशंसनीय है.