गीत
कोई भटक कहीं है गया, जग के जाल में;कोई अटक चटक है गया, प्रकृति ज्वार में! कितने हैं भँवर आए
Read Moreआज मैं आनन्द में हूँ, सृष्टि मेरी सौम्य है; देह मम स्फूर्ति में है, कर्म करने योग्य है! थकावट सारी
Read Moreशास्त्र उनके हैं शस्त्र उनके हैं, शरीर प्राण प्रण उन्हीं के हैं; तान उनकी में सभी चलते हैं, भान उनके
Read Moreव्यस्त है देखने में हर कोई, जाल पत्रों में विचरी दृष्टि रही; गोद में सारा विश्व पसरा रहा, गुदगुदा गुनगुना
Read Moreजगत उनके रहे हैं गत सब ही, गति उनकी में बहे हैं यों ही; ज्ञान ना कहाँ है और क्यों
Read Moreकोई बेचैन विश्व उनके है, रहस्य उनका कहाँ समझे है; दृष्टि उनकी है सृष्टि उनकी है, फिर भी हैरान औ
Read Moreकौरव से कर्म क्रूर करा, पाण्डव सुधा; आक्रोश रोष भव में फुरा, साधते विधा ! अर्जुन का शौर्य सूझ बूझ,
Read Moreझरने की हर झरती झलकी, पुलकी ललकी चहकी किलकी; थिरकी महकी कबहुक छलकी, क्षणिका की कूक सुनी कुहकी! कब रुक
Read Moreकितने कल्पों से संग रहा, कितने जीवन ग्रह छुड़वाया; रिश्ते नाते कितने सहसा, मोड़ा तोड़ा छोड़ा जोड़ा! परिवार सखा जीवन
Read Moreऊर्ध्व उठ देख हैं प्रचुर पाते, झाँक आवागमन बीच लेते तलों के नीचे पर न तक पाते, रहा क्या छत
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