मिलन
आकाश में खुल गये है
बादलों से बने वातायन
झांकते से लगते है वहाँ से
मुझे तुम्हारे सुंदर नयन
तुम्हारी देह के रंग सी
निखर आई है धूप
आलोकित हो उठा है
मेरे मन का आँगन
किरणों की तरह पाकर
तुम्हारी
नरम उंगलियो का स्पर्श
खिल उठे हैं
हृदय के उपवन में
उमंगों के सुमन
हो जाते है सजीव
कभी न कभी स्मरण
यादें कर ही लेती है
एक न एक दिन
आकार ग्रहण
ख्यालों की चाँदनी में
मिलते मिलते
दो रूहों का सच में
हो ज़ाता है
समय के किसी
सुनहरे भोर में मिलन
किशोर
बढ़िया !
बहुत अच्छी कविता .
thank u gurmel ji