निर्धन मन में छाई उदासी आस का दीप जलाओ तो
मन आंगन छाया अँधेरा एक स्नेह का दीप जलाओ तो
इच्छाओ की मूरत हैं इंसान, इच्छाओ से कर तौबा
करके मन को वश में एकाग्रता का दीप जलाओ तो
नाम- गुंजन अग्रवाल
साहित्यिक नाम - "अनहद"
शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी)
सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई
संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल
विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित
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विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी,
नभ को छूना पर बाकी है।
काव्यसाधना की मैं प्यासी,
काव्य कलम मेरी साकी है।
मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु,
काव्य पियाला छलका जाऊँ।
पीते पीते होश न खोना,
सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ।
छ्न्द बहर अरकान सभी ये,
रखती हूँ अपने तरकश में।
किन्तु नही मैं रह पाती हूँ,
सृजन करे कुछ अपने वश में।
शब्द साधना कर लेखन में,
बात हृदय की कह जाती हूँ।
काव्य सहोदर काव्य मित्र है,
अतः कवित्त दोहराती हूँ।
...... *अनहद गुंजन*
3 thoughts on “मुक्तक”
गुंजन बहन , बहुत अछे लेकिन मेरी सोच कुछ और है . जिस दिन इंसान की इच्छाएँ ख़तम हो गईं उस दिन यह धरती भी मार्स की तरह बंजर हो जाएगी . इच्छाओं से ही संसार की उन्ती होती है , इच्छाओं से ही संसार उन्ती करता है . हर इंसान अपने को सुखी रखने की इच्छा रखता है . अगर टाटा बिरला अम्बानी जैसे लोग इच्छा नहीं रखते तो इतने लाखों लोगों को रुजगार नहीं मिलता . जो गरीब है कहने को तो हम कह सकते हैं कि आशा का दीप जलाए रखो लेकिन उस के घर में झाँक कर देखें तो कुछ और ही नज़र आने लगेगा . उन के घर के बीमार सदस्य चाहेंगे नहीं कि उन का अछे से अछे हस्पताल में इलाज हो ? इच्छा तो उनकी भी होती है लेकिन मजबूरी .
गुंजन बहन , बहुत अछे लेकिन मेरी सोच कुछ और है . जिस दिन इंसान की इच्छाएँ ख़तम हो गईं उस दिन यह धरती भी मार्स की तरह बंजर हो जाएगी . इच्छाओं से ही संसार की उन्ती होती है , इच्छाओं से ही संसार उन्ती करता है . हर इंसान अपने को सुखी रखने की इच्छा रखता है . अगर टाटा बिरला अम्बानी जैसे लोग इच्छा नहीं रखते तो इतने लाखों लोगों को रुजगार नहीं मिलता . जो गरीब है कहने को तो हम कह सकते हैं कि आशा का दीप जलाए रखो लेकिन उस के घर में झाँक कर देखें तो कुछ और ही नज़र आने लगेगा . उन के घर के बीमार सदस्य चाहेंगे नहीं कि उन का अछे से अछे हस्पताल में इलाज हो ? इच्छा तो उनकी भी होती है लेकिन मजबूरी .
मैं आपसे सहमत हूँ, भाई साहब.
अच्छा मुक्तक !