मुझे यही एक आस है
सब कुछ पास है
फिर क्यों लगता है
कुछ खोया सा है
अरसा हुआ तुझे
विदा किये
फिर क्यूँ तू
मेरे आस -पास है
नज़र टिकी है
दरवाज़े पर
हर आहट
बस तेरी ही आस है
ये तकदीर की ही तो
बात है तू रूठा है
लेकिन
मुझे मना लेगा
मुझे यही एक आस है
बहुत ही सुंदर
बहुत अच्छी कविता उपासना जी , आस रखना ही तो जीवन की निशानी है .
बहुत खूब, उपासना जी.
वाह ! उपासना जी बहुत सुन्दर !