कविता

शीत आगमन ताँका

बर्फ का गोला
कॉफी का झाग लगे
सर्दी का खेला
रुई दुई व धुईं
जी को सुहाना लगे।
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फेरा में पड़ा
धुंध-कारा में बंद
रवि बेचारा
दहकता अंगार
शीत-ग्रास में फंसा
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गिरि वसन
धूसर अँगरखा
उजली टोपी
शीत का शरारत
स्वर्ण चोरी हो गया

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*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

4 thoughts on “शीत आगमन ताँका

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      स्नेहाशीष बच्ची

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभार

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