तुलसी और शालिग्राम विवाह पर्व- एक अनैतिक पर्व
भारतीय महिलाओ द्वारा मनाया जाने वाले अनेक पर्वो में से एक पर्व है तुलसी और शालिग्राम विवाह, जो कार्तिक शुक्ल की एकादशी को महिलाओ द्वारा बड़ी श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है । कहा जाता है की तुलसी – शालिग्राम विवाह सभी प्रकार के सुख और सौभाग्य देने वाला होता है।
इस दिन तुलसी के पौधे को को चूड़ियो , चुनरी आदि से सजा के विष्णु की मूर्ति रख के उसके साथ विवाह किया जाता है।
श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार तुलसी पूर्व जन्म में जालंदर नाम के दैत्य की पत्नी थी , जालंदर को विष्णु ने धोखे से मारा था । तुलसी अपने पति जालंदर के वियोग को सहन नहीं कर पाई और तड़पती हुई सती हो गई। उसकी भस्म से तुलसी का पौधा उगा , तुलसी की पवित्रता और त्याग से प्रसन्न होके भगवान् विष्णु ने तुलसी को अपनी पत्नी के रूप में अंगीकार किया और वरदान दिया की जो भी तुम्हारा विवाह मेरे साथ करवायेगा उसे स्वर्ग प्राप्त होगा।
अब प्रश्न यह है की तुलसी ने विष्णु के लिए अपनी जान नहीं दी थी बल्कि अपने पति जालंधर जो की एक ‘ दैत्य’ था उसके वियोग में अपनी जान दी थी ।
फिर विष्णु ने तुलसी को अपनी पत्नी कैसे बना लिया? यदि विष्णु को वरदान देना ही था तो तुलसी और जालंधर के पुन: मिलन और विवाह का वरदान देना था क्यों की तुलसी अपने पति जालंधर से ही प्रेम करती थी न की विष्णु से।
पर विष्णु ने खुद भी दुसरे की पत्नी से जबरन विवाह किया बल्कि अपने भक्तो को भी तुलसी का विवाह अपने साथ करवाने पर स्वर्ग का टिकट मुफ्त देने का वादा किया ।
धन्य हैं ऐसे भगवान्…..
हा..हा…हा… केशव जी, इस तरह की परम्पराएँ शुद्ध मूर्खता हैं. इनका कोई समर्थन नहीं किया जा सकता. भगवत में ऐसी बेहूदी कथाएं बड़ी संख्या में दी गयी हैं, परन्तु मूर्ख महिलाएं उसकी कथाएं सुनती हैं और उनको सत्य मानकर वैसा ही मूर्खतापूर्ण आचरण करती हैं. केवल उचित ज्ञान देकर ही इन मूर्खताओं को रोका जा सकता है.
विष्णु रूप बदल कर बलात्कार किये थे जिसके कारण शालिग्राम बने …. शालिग्राम और तुलसी की शादी होती है ….. ये भी कहानी का अंश है ….. कितना सच कितना झूठ ये तो उस समय जो रहा होगा वही बता पाता ….. अभी तो बस सब कहानी है किसने रची पता नही