मुलायम रेत
चाँद डूबने के बाद
सूरज उगने से पहले
भोर की
पहली आत्मीय किरण से
स्वागत में तू कुछ कह ले
सूरज डूबने के बाद
चाँद उगने से पहले
सांझ की
आखरी लौटती किरण की
बिदाई का दर्द तू सह ले
आँसुओ से भरी
लगती है नदी
अभी लहरों संग
चाहे जितना तू बह ले
भीतर तेरे ही है
रास्ता और मंज़िल
साहिल की मुलायम रेत पर
चाहे तू आज जितना चल ले
किशोर कुमार खोरेंद्र
अच्छी कविता.
shukriya vijay ji