ओर छोर
तेरी याद जाए तो फुरसत मिले
तू रूबरू आए तो फ़ुरसत मिले
सागर की ओर बहती है नदियाँ
कोई हसरत न हो तो फुरसत मिले
वो आँखों मे चाँद सा समाए रहते हैं
प्यार में फरेब हो तो फुरसत मिले
निरंतर घूमती रहती है यह धरती
धूरी न हो तो धरा को फुरसत मिले
जुनुने इश्क़ आकाश की तरह है
कोई ओर छोर हो तो फुरसत मिले
किशोर कुमार खोरेंद्र
बहुत अच्छी ग़ज़ल !