कविता

कृष्ण प्राणप्रिये (भाग २)

जग छोटी छोटी माला लेकर

नाम तुम्हारा रटता है

क्षण क्षण ऐसे भक्तों का बस

ऐसे ही माधव कटता है

जो झुककर चरण पखार रहे

जो तुमपर प्राण निछार रहे

जो देख तुम्हे बस रोते हैं

या अपना आपा खोते हैं

ऐसे बिरले दीवानों में

एक नाम मेरा भी जोड़ लो तुम

मेरा मारग जिस ओर भी है

बस अपनी ओर ही मोड़ लो तुम

मैं भी कबसे बैठा हूँ

खुद ही खुद से ऐंठा हूँ

टूटा हूँ मैं झरने जैसा

जीवित हूँ पर मरने जैसा

बस याद तुम्हे ही करता हूँ

रो रो याद में मरता हूँ

कभी यमुना तक दौड़ा जाऊं

कभी मिलन गीत मैं ही गाऊं

पर तुम कभी ना आते हो

मुझको ना दरस दिखाते हो

मैं पाता हूँ तब खुद को हारा

अपनी किस्मत का ही मारा

सपनो में तुमको पाया था

तब मन ही मन में गाया था

पर आँख खुली तो बस तम था

अमिलन का मुझमे केवल गम था

इसीलिए कृपा कर करुनासिंधु मेरा

ये बंधन खुद तोड़ लो तुम

मेरा मारग जिस ओर भी है

बस अपनी ओर ही मोड़ लो तुम
_____—सौरभ कुमार

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

3 thoughts on “कृष्ण प्राणप्रिये (भाग २)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छी कविता है सौरव जी , आगे भी इंतज़ार रहेगा .

  • विजय कुमार सिंघल

    आपकी कविता का दूसरा भाग भी अच्छा है.

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