कविता

हास्य कविता : तुम्हारी ऐसी-तैसी

हे द्रोही, मक्कार , तुम्हारी ऐसी-तैसी ।
भारत के गद्दार, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

मोदी शेरे दिल है , भारत माता का।
सुन बे रँगे सियार, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

bukhari

हे इमाम , शाही है तू कैसे मानूँ ?
गो भक्षक ,हत्यार, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

शेर कभी कुत्तों की महफिल में जाते ?
खच्छर, गधे, गंवार तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

पप्पू-इटलीवाली को तुम बुलवा लो,
हे नवाज के ‘सार’, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

जिसने भारत माँ को लाखों घाव दिये।
है उसका सत्कार, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

अपने भारत माँ का हित चिंतक मोदी।
उसका है तिरस्कार , तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

खाते हो भारत का गाते हो दुश्मन का।
आतंकी सरदार, तुम्हारी ऐसी-तैसी॥

वंशवाद के पोषक मियां बुखारी मुल्ले ।
अब हो जा तैयार, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

पप्पू, लालू, टीपू, शरद पवार, द्रमुक ।
जीना है दुश्वार, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

वंशवाद के जो-जो थे बटमार यहाँ।
हो गया बंटाढार, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

जो हिन्दुस्तानी हैं उनका है मोदी।
कहता है संसार तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

अब तूने बर्रे के छत्ते को खोदा है।
अब रहना तैयार, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

फिर मत कहना मोदी सेकुलर नहीं मियां ।
छलिए, धूर्त, गंवार, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

महँगा बहुत पड़ेगा श्वानों के राजा।
ये तेरा किरदार , तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

हिन्दी, हिंदू, हिंदुस्तान विरोधी तू,।
लाज रखे करतार , तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

जामा मस्जिद तेरे बाप की नहीं, देश की है।
कलुषित दिल के खार , तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

जरा सोच मुस्लिम जन तेरे फतवों को-
कभी किए स्वीकार ? तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

मुल्ला-यम को नेवता भेजो वो आयेगा।
चूमे चरण ‘तोहार’, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

मोदी अब गुजरात नहीं दिल्ली में है ।
बचना रे ठगहार , तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

तुम्हें याद है संजय गांधी का करतब ।
होगा पुनरुद्धार , तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

लिखो वसीयत सुत को गद्दी सौंपो तुम।
हंस लो दिन दो चार , तुम्हारी ऐसी तैसी ॥

नाक रगड़कर मोदी चरणों मे एक दिन।
रिरियाओगे यार, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

भारत के पीएम का जो अपमान किया है।
भोगोगे गद्दार, तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

ये मोदी की नहीं देशभर की इज्जत है।
कुछ तो करो विचार , तुम्हारी ऐसी-तैसी ॥

सुरेश मिश्र 09869141831

सुरेश मिश्र

हास्य कवि मो. 09869141831, 09619872154

3 thoughts on “हास्य कविता : तुम्हारी ऐसी-तैसी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुरेश भाई , जो मेरे दिल में था आप ने कह दिया वोह भी इतने मजेदार अक्षरों में . इस मुल्ला का दिमाग तो मैं सुन कर ही दंग रह गिया . यह तो ऐसे हुआ जैसे कोई अपनी शादी में अपने बाप को छोड़ कर दुश्मन के बाप को निओता दे दे.

    • विजय कुमार सिंघल

      हा…हा…हा… भाई साहब आपने अच्छी उपमा दी है….

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत बढ़िया. यह मक्कार आदमी घोर भर्त्सना के लायक है. आपकी कविता पढ़कर मजा आ गया.

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