हास्य कविता : फेसबुक ने ही निकम्मा कर दिया
‘फेस बुक’ ने ही निकम्मा कर दिया ,
वरना हम भी ‘आदमी’ थे काम के ॥
अब तो इसमे डूबे हैं ऐसे मियां ,
न सुबह के हम रहे ,न शाम के ॥
हाथ में ‘सेल’,आँख अटकी हर पहर,
लड़ रहे हैं वीर ज्यों संग्राम के ॥
घर,सड़क,बस,ट्रेन में,आफिस कहीं ,
यार पगलाए हैं हम बिन दाम के ॥
डाटती बीबी,दुखी बच्चे हुये,
लद गए दिन यार झंडू बाम के ॥
दिल नहीं लगता कहीं इसके बिना,
गा रहे सब गुण ,इसी के नाम के ॥
काम कोई कुछ कहे तो रंज हो ,
हो गए हैं सब यहाँ बेकाम के ॥
एक लाइक,एक ताली ,हद हुई ,
‘लत’ नहीं देखे हैं ऐसे जाम के ॥
मुक्ति इससे अब मिले कैसे मियां –
मिल रहे सुख यहाँ चारों धाम के ॥
क्यों बनाया ऐ खुदा तू ‘फेस बुक’ ,
सब हवाले हो गए हज्जाम के ॥
सुरेश मिश्र -09869141831
hahaha
ha ha ha very nyc
सुरेश भाई , मेरे उदास चेहरे पर आज आप ने हंसी ला दी . मज़ा ही आ गिया . अभी अभी मैं भी फेस बुक पर ही था , हा हा हा
हा…हा…हा…. सही कहा जी.