कौड़ी के मोल
कौड़ी के मोल में बिक गयीं
आधुनिक घर की अनुपयोगी चीजें
जिनसे जुडी थी अनगिनत यादें ।
वो पुरानी साइकिल ।
स्मरण है
एक साइकिल और हम तीन भाई
चलाने को होती थी खूब लड़ाई ।
फिर
बारी-बारी हांकते साइकिल का पैंडल ।
वो पुरानी टीवी ।
टीवी कम रोगी ज्यादा
हर हफ्ते इलाज को आते मैकेनिक ।
वो एंटेना ।
जरा सी बारिश
और दौड़ पड़ते हम
उसे हिलाने-डुलाने छत पर ।
टॉर्च,
तीन बैंड का रेडिओ
लालटेन, फाउंटेन पेन
पुरानी सन्दूकेँ ।
न जाने कितनी यादगार चीजें
आधुनिकता के साथ अनुपयोगी हो गयीं
और
कबाड़ी के हाथ बिकने को मजबूर ।
अनायास सोचने लगा
जब कोई बिसात नहीं इंसान की
तो
ये महज हैं सामान
वो भी बेजुबान।
बिलकुल सही , इंसान है ही किया , कबाड़ में भेजे गए सामान की कुछ वर्षों बाद एन्टीक बन कर कीमत कुछ बड सकती है लेकिन इंसान का तो कुछ नहीं बचता .
बेहतरीन कविता. जमीन से जुड़ी बातें.