फैसला
तुम्हारे और मेरे बीच अनंत फ़ासिला है
पर मेरे साथ चलने का तुझमे हौसला है
यूँ तो जिंदगी में सदा तन्हा ही रहना है
जिससे घिरा हूँ वो तेरी यादों का मेला है
तेरी प्यार भरी निगाहें मेरा पिछा करती हैं
पंखुरियों से भी चुभन को मैंने झेला है
मील के पत्थरो सी मिलती है तन्हाई हर मोड़ पर
मिलना बिछड़ना चेतना की आदिम श्रंखला है
पूछता हूँ तो तुम मुझे बहुत बहुत अपना कह देते हो
मुझे कभी न भुलाने का तूने किया अंतिम फैसला है
किशोर कुमार खोरेन्द्र
बढ़िया कविता.
मज़ा आ गिया खोरेंदर भाई .