कविता

बुखार

वर्षों से लागे है जैसे इमाम के ईमान को आ रहा बुखार

अब मियादी हो चला दिल -दिमाग से चलो दें इसे बुहार

मालिक को काटे है गैरों के तलवे चाटे है यह

भले समाज में दीमक के कीटाणू फैलाये है यह

खुदा के नाम पर खुदाई कर गड्ढे नहीं करने देंगे

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई भाई  मिलकर मिट्टी भर देंगे……

 

bukhari

संगीता कुमारी

पिता का नाम---------------श्री अरुण कुमार माथुर माता का नाम--------------श्रीमती मनोरमा माथुर जन्मतिथी------------------- २३ दिसम्बर शिक्षा सम्बंधी योग्यता-----दसवीं (सी.बी.एस.ई) दिल्ली बारहवीं (सी.बी.एस.ई) दिल्ली बी.ए, दिल्ली विश्वविद्धालय एम.ए (अंग्रेजी), आगरा विश्वविद्धालय बी.एड, आगरा विश्वविद्धालय एम.ए (शिक्षा) चौधरी चरणसिंह विश्वविद्धालय रुचि--------------------------पढना, लिखना, खाना बनाना, संगीत सुनना व नृत्य भाषा ज्ञान-------------------हिंदी, अंग्रेजी काव्य संग्रह--- ह्रदय के झरोखे (यश पब्लिकेशन दिल्ली, शाहादरा) कहानी संग्रह--- अंतराल (हिंदी साहित्य निकेतन, बिजनौर उत्तर प्रदेश) काव्य संग्रह संगीता की कवितायें (विंध्य न्यूज नेट्वर्क) पता--- सी-72/4 नरोरा एटॉमिक पावर स्टेशन, टाउन शिप, नरोरा, बुलंदशहर उत्तर प्रदेश, पिन—203389 मोबाईल नम्बर—08954590566 E.mail: [email protected] [email protected] www.sangeetasunshine.webs.com

One thought on “बुखार

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. इस बुखारी के बुखार को अब हमेशा के लिए उतार देने का वक्त आ गया है.

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