कविता

सघन नीरवता

 

तुम्हारी चेतना के ध्यान कक्ष में
मेरी सघन नीरवता की है गूँज

तुम्हारे मन की आँखों के समक्ष
कभी साये सा आ जाता हूँ
सशरीर धरकर अपना रूप

कभी कौँध जाता हूँ तड़ित सा
एकाएक उभरकर चमकदार धूप

अपने ह्रदय के आँचल की छोर में
मुझे बांध लो मैं कहीं न जाऊं गुम

गुनगुनाता हूँ ,मंडराता हूँ
सा एक मधुप
बस तुम्हारे सम्मुख

तुम्हे ही लिखता हूँ तुम्हे ही गाता हूँ
तुम्हे अपने ख्यालों में
जीने की मुझमे हैं जबरदस्त धुन

अपने रोम रोम में तुम्हारे प्रति
जगाकर बाह्य आकर्षण
मैंने की हैं एक छोटी सी भूल

तुम मेरी प्रेरणा हो
तुम्हे मैं चाहता हूँ समूल

क्या तन ,क्या मन
तुम्हारी चितवन में
तुम्हारे चिंतन में
तुम्हारे अंग अंग में
उपस्थित हैं तुम्हारी रूह

कहाँ से आरम्भ करूँ
तुमसे करना मैं प्रेम
दिग्भ्रमित हो
असमंजस के झूले की तरह
मेरा वजूद रहा है झूल

तुम्हारी काया है दग्ध हवन कुंड
मैं हूँ अनुराग के पंचामृत का पवित्र एक बूँद

तुममे समाहित होकर बन जाता हूँ
कभी भस्म या कभी धूम

फिर भी प्यास बुझती नहीं
चुभता हैं मुझे
तुम्हारे छद्म आक्रोश के
त्रिनेत्र का प्रखर त्रिशूल

तुम सुन्दर प्रकृति हो
तुममे आसक्त मैं हूँ एक पुरुष

मैं नहीं रह गया हूँ केवल कारणभूत
मुझे सम्मोहित करता हैं
तुम्हारा अनुपम और दिव्य स्वरूप

किशोर

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

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