हाइकु कविताएँ
जहां हमारा मन जाकर बार-बार अटक जाता है, मन को कुछ खोने का डर और मिलने की आस लगी रहती है, जो हमें सुखी-दुखी, मान-अपमान, लाभ-हानि, जय-पराजय देती है, वही हमारी माया है। यानी किसी शख्स के संसार में उलझे रहने की वृत्ति का नाम माया है। माया अपनी कलाकारी से जीवों को खुद में उलझाकर जन्म-मरण के चक्र में बांधे रखती है। जब तक मन माया के जाल में फंसा रहता है, मुक्ति मुमकिन नहीं। माया से ऊपर उठना मुक्ति है। संसार जितना दिखाई देता है, वह और कुछ नहीं, बल्कि माया का जाल है ।
ठगनी माया
खोना न सुध बुध
बिसरा काया ।
खोने का भय
पाने का अहसास
माया हो पास ।
मुक्ति की चाह
पथ है भटकाती
माया की राह ।
मिले न मुक्ति
प्रपंच में उलझे
व्यर्थ है युक्ति ।
देह का अंत
पुनः पुनः उत्पन्न
इच्छा अनंत ।
शुक्रिया उपासना जी
दिल से धन्यवाद आपका हौसला अफजाई के लिए विजय भाई जी
आ गुरमेल जी आपने सही कहा की बिना इच्छायों के हम अपना लक्ष्य क9 प्राप्त नही कर सकते लेकिन इच्छाओं के अभाव में न तो हम कर्म कर सकते हैं और न ही लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। इच्छाएं कीजिए। इच्छा करना गलत नहीं है, लेकिन हमारी इच्छाएं कैसी हों, यह देखना बहुत महत्त्वपूर्ण है। इच्छाएं अनंत हो सकती हैं। व्यक्ति को चाहिए कि सही इच्छाओं को उत्पन्न करने या चुनने की क्षमता का विकास करे। …….दिल से धन्यवाद आपका हौसला अफजाई के लिए
गुंजन जी , बस यही संसार है , इसे माया कह लें लेकिन हम ने यहाँ ही रहना है . अगर हम सब कुछ छोड़ दें दुनीआं जंगल बन जायेगी . कविता अच्छी लगी .
अच्छी हाइकु. काफी स्पष्ट भी हैं.
बहुत बढ़िया हाइकु ….ये जीवन माया जाल है …