धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

सर्पफणी और सर्परागिनी ..की गाथा {स्वप्न चित्रण }

मूलाधार चक्र के उदगम से

पतली एक गर्म धारा

सुषुम्ना की ओर चल पड़ी

 

मुस्कुराते हुए  आये देखो

अब मेरे मन को लुभाने

सप्त रंगी संगी सर्पफणी

 

मैं तत क्षण

बन जाती सर्परागिनी

सर्पफणी कहते आओ

करे खेल -खेल में नृत्य

मैं भी लहराती

बन एक लचीली सर्पिणी

 

विलग करने मन को

झकझोर देते पहले तन को

जैसे –

उलीच रहा हो कोई

अपनी हथेलियों से

मेरी देह में भरे

मन के जल को

 

मुग्ध हो आत्मा चाहती

सुनती रहूं उसकी मधुर बाणी

 

एकाएक आते सम्मुख एक पुजारी

हवन शुरू हो जाता

नभ से फूलो की वर्षा होती भारी

हम दोनों लहराते

हवन कुण्ड के चारो और

नाग -नागिन सा बन – दोनों प्राणी

 

मां आती

मुझे लाल कपड़ो को पहनाती

और हवन कुण्ड के समक्ष

सर्प  फणी  और मुझे

साथ साथ बिठाती

कुछ देर उपरान्त कहती मां

चलो रागिनी मेरे साथ

मैं कहती -हर बार की तरह

मुझे जाना है नदी के उस पार

जहां मेरे पिता शिव  कर रहे हैं इन्तजार

 

देकर आशीर्वाद माता चली जाती

तब मुझसे पूछते नागराज

अभी अवसर हैं

लौटने से पहले क्या चाहोगी

देखना मेरा देव रूप

मेरे द्वारा

कुछ क्षण के लिए

अपना कवच उतार

 

मैंने कहा नही

तब

पुजारी हम दोनों कों

लेकर गए पकड़ हाथ

बहुत दूर जाने के बाद

हमें मिला एक कूप अनजान

 

जिसके भीतर जाने पर

सर्प फणी  ने दिखलाया मुझे

अपना सुन्दर दिव्य रूप

और हुई  इस तरह उनसे

मेरी जान पहचान

 

मैंने कहा जाना हैं वापस

तब

छोड़ गए मुझे नदी के इस पार

 

फिर मुझे लौटने के लिये

पैदल चलना पडा

जंगल जंगल पर्वत पर्वत

जो न था बहुत आसान

 

लौटने पर पायी खुद कों बेसुध

लगा बहुत थक गयी हूँ

अपना ही शरीर दिखा

मुझे अनजान

 

फिर भी कुछ देर तक

एक कत्थई चिड़िया कहती रही

तेरे प्राण पखेरू हैं मेरे साथ

 

हैरानी के आधे घंटे पश्चात

देख पायी खुद कों

मेरे साजन समीप थे

चिंतित और बान्हे पसार

 

बरखा ज्ञानी

 

साध्वी बरखा ज्ञानी

बरखा ज्ञानी ,जन्म 10-05, रूचि शिव भकत, निवास-रायपुर (छत्तीसगढ़)

3 thoughts on “सर्पफणी और सर्परागिनी ..की गाथा {स्वप्न चित्रण }

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहन जी , कथा रूपी कविता अच्छी है लेकिन आप के मन में किया है कुछ समझ नहीं पड़ा , मुआफ कर देना .

  • विजय कुमार सिंघल

    कुछ समझ में नहीं आया. यह शायद बहुत ऊंचे स्तर का आध्यात्मिक अनुभव है, जहां तक हम लोग नहीं पहुँच सकते. आपको प्रणाम !

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